रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘कल उच्चतम न्यायालय ने अरावली की परिभाषा में बदलाव को लेकर 20 नवंबर, 2025 को दिए गए अपने ही फैसले को स्वतः संज्ञान लेते हुए वापस ले लिया। जबकि मोदी सरकार ने उस फैसले को पूरे उत्साह के साथ अपनाया था। उच्चतम न्यायालय का यह कदम अत्यंत आवश्यक और स्वागतयोग्य था।’
उन्होंने कहा कि अब पर्यावरण से जुड़े तीन अन्य अत्यंत महत्वपूर्ण और तात्कालिक मुद्दे हैं, जिन पर सुप्रीम कोर्ट को अरावली मामले की तरह ही स्वतः संज्ञान लेकर हस्तक्षेप करना चाहिए। रमेश ने कहा, ‘6 अगस्त 2025 को उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान सरकार और भारत सरकार के सरिस्का टाइगर रिजर्व की सीमाओं को दोबारा तय करने के प्रस्ताव पर रोक लगा दी थी, इसके तहत लगभग 57 बंद खदानों को खोलने का रास्ता बनाया जा रहा था। इस प्रस्ताव को साफ तौर से खारिज कर देना चाहिए।’
रमेश के मुताबिक, 18 नवंबर, 2025 को उच्चतम न्यायालय ने अपने ही 16 मई, 2025 के उस फैसले की समीक्षा का दरवाजा खोल दिया था, जिसमें पूर्व प्रभाव से दी जाने वाली पर्यावरणीय मंजूरियों पर रोक लगाई गई थी। उन्होंने कहा कि ऐसी मंजूरियां न्यायशास्त्र के बुनियादी सिद्धांत के विरुद्ध हैं और शासन व्यवस्था का उपहास बनाती हैं। कांग्रेस नेता ने इस बात पर जोर दिया, इस फैसले की समीक्षा अनावश्यक थी। पूर्व प्रभाव से मंजूरी कभी भी नहीं दी जानी चाहिए। उनका कहना है, ‘कानूनों, नियमों और प्रावधानों को अक्सर जानबूझकर इस भरोसे के साथ दरकिनार किया जाता है कि परियोजना शुरू हो जाने के बाद निर्णय प्रक्रिया को मैनेज कर लिया जाएगा।














