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  • दिग्विजय सिंह को मिला शशि थरूर का साथ, क्या कांग्रेस की अब और बढ़ने वाली है टेंशन?

    नई दिल्ली : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की तरफ से संघ के संगठन की तारीफ के बाद से कांग्रेस में हलचल मची हुई है। दिग्विजय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तारीफ कर अपने ही दल के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी। हालांकि, इसे पार्टी का दबाव कहें या कुछ और दिग्विजय की


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    By Azad Hind Desk दिसम्बर 28, 2025
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    नई दिल्ली : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की तरफ से संघ के संगठन की तारीफ के बाद से कांग्रेस में हलचल मची हुई है। दिग्विजय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तारीफ कर अपने ही दल के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी। हालांकि, इसे पार्टी का दबाव कहें या कुछ और दिग्विजय की इस पर सफाई भी आ गई। हालांकि, राजनीति के जानकारों का मानना है कि दिग्विजय ने अपनी पोस्ट के जरिये परोक्ष रूप से संगठन के काम पर तंज तो कस ही दिया। खास बात है कि अब दिग्विजय को पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता शशि थरूर का भी साथ मिल गया है। ऐसे में कांग्रेस के सामने अब दोहरी चुनौती खड़ी होती दिख रही है।

    दिग्विजय के बयान पर क्या बोले थरूर?

    कांग्रेस मुख्यालय में रविवार को आयोजित पार्टी के 140वें स्थापना दिवस कार्यक्रम के दौरान शशि थरूर ने अपने पार्टी सहयोगी दिग्विजय सिंह के विचारों का समर्थन किया। थरूर ने कहा कि संगठन को मजबूत किया जाना चाहिए। तिरुवनंतपुरम के सांसद ने कहा कि हमारा 140 साल का इतिहास है, और हम इससे बहुत कुछ सीख सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम खुद से भी सीख सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि हमारे संगठन में अनुशासन होना चाहिए। दिग्विजय सिंह अपने लिए खुद बोल सकते हैं।

    दिग्विजय, थरूर के बयान का असर

    दिग्विजय सिंह से पहले शशि थरूर भी पार्टी लाइन से इतर बयान देते हैं। थरूर के बाद दिग्विजय का बयान भी कांग्रेस के असहज करने वाला है। कांग्रेस जहां संघ को अपनी मुख्य वैचारिक चुनौती मानती है, वहीं पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं अगर संघ के ‘संगठन मॉडल’ के संबंध में एक सुर मिलाते हैं तो इससे कार्यकर्ताओं में नेगेटिव मैसेज जाता है।

    दिग्विजय सिंह के बयान के बाद कांग्रेस में पवन खेड़ा, सलमान खुर्शीद, मणिक्कम टैगोर जैसे नेताओं ने खुल कर विरोध किया है। इससे कांग्रेस के भीतर स्पष्ट दो फाड़ साफतौर पर दिख रही है। एक पक्ष जो आत्मनिरीक्षण की बात कर रहा है और दूसरा जो इसे वैचारिक समझौता मान रहा है। इस तरह के बयानों ने कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) के भीतर केंद्रीकरण और संगठन की कमजोरी जैसी स्थिति को सार्वजनिक कर दिया है। इसके बाद निश्चित रूप से कांग्रेस हाई कमान पर सुधार का दबाव बढ़ेगा।

    पार्टी संगठन में बदलाव की मांग

    कांग्रेस के अंदर संगठनात्मक बदलाव की मांग यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस के सीनियर नेताओं ने संगठनात्मक बदलाव की मांग की है। दिसंबर में, ओडिशा के पूर्व विधायक मोहम्मद मोकिम ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी में “ओपन-हार्ट सर्जरी” की मांग की थी। 8 दिसंबर को सोनिया गांधी को लिखे अपने पत्र में, ओडिशा के पूर्व विधायक मोहम्मद मोकिम ने ओडिशा में लगातार छह और लोकसभा में तीन चुनावों में हार पर प्रकाश डाला था।

    इस साल नवंबर में बिहार विधानसभा चुनावों से पहले भी इसी तरह की चिंताएं उठाई गई थीं, जहां सीट बंटवारे की बातचीत के दौरान नेतृत्व’ और कार्यकर्ताओं के बीच की दूरी साफ दिखाई दे रही थी। 2020 की शुरुआत में, पार्टी के 23 सीनियर नेताओं के एक ग्रुप ने सोनिया को एक लेटर लिखकर पार्टी में “सामूहिक और सबको साथ लेकर चलने वाली लीडरशिप” की मांग की थी। इनमें से कुछ असंतुष्टों को पार्टी से निकाल दिया गया। वहीं, कुछ ने खुद ही पार्टी छोड़ दी, लेकिन कांग्रेस के काम करने के तरीके में कोई बदलाव नहीं आया।

    कांग्रेस के लिए कैसे बढ़ेगी मुश्किल?

    अब सवाल यह है कि इस तरह के बयान पार्टी की आंतरिक कलह को उजागर कर रहे हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या कांग्रेस इन नेताओं के खिलाफ कोई ऐक्शन लेगी। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि दिग्विजय सिंह कांग्रेस के सबसे अनुभवी रणनीतिकारों में से एक हैं। इसके अलावा मध्य प्रदेश की राजनीति में उनकी पैठ मजबूत है। वहीं शशि थरूर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का एक बौद्धिक चेहरा हैं। ऐसे में इन पर कार्रवाई से पार्टी की छवि को नुकसान हो सकता है।

    शशि थरूर पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ चुके हैं। इसके अलावा पार्टी के भीतर लोकतंत्र की पैरवी करते रहे हैं। ऐसे में पार्टी यदि उन पर कोई कार्रवाई करेगी तो इससे कांग्रेस के उस नैरेटिव को चोट पहुंचेगी जिसमें वह खुद को बीजेपी की तुलना में अधिक लोकतांत्रिक और अभिव्यक्ति की आजादी वाली पार्टी बताती है।

    भले ही थरूर पीएम मोदी की सार्वजनिक रूप से तारीफ कर चुके हैं लेकिन यदि उन पर कार्रवाई होती है तो बीजेपी इसे कांग्रेस में लोकतंत्र की कमी के रूप में प्रचारित करेगी। साथ ही पार्टी में सुधार की मांग करने वाले कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी असर होगा। ऐसे में पार्टी फिलहाल ‘देखो और इंतजार करो’ की मुद्रा में है।

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