न्यूज18 की रिपोर्ट के मुताबिक, इंटेलिजेंस रिपोर्ट से पता चलता है कि ढाका में ISI बहुत गहरे और सुनियोजित तरीके से प्रभाव जमा रहा है। पंद्रह साल में पहली बार पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) का बांग्लादेश के राजनीतिक और सुरक्षा परिदृश्य पर सीधा असर डाल रही है। ढाका-इस्लामाबाद धुरी के बढ़ते गठजोड़ पर नई दिल्ली की चिंता भी बढ़ रही है।
ISI का ‘ढाका सेल’
भारत और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए सबसे चिंताजनक बात ढाका में पाकिस्तानी हाई कमीशन के अंदर एक समर्पित ISI स्पेशल सेल है। CNN-News18 का दावा है कि इस यूनिट में उच्च पदस्थ सैन्य और इंटेलिजेंस अधिकारियों की एक टीम है। इसमें एक ब्रिगेडियर, दो कर्नल, चार मेजर और पाकिस्तान की नौसेना और वायु सेना के कई अधिकारी शामिल हैं।
इस सेल को अक्टूबर में पाकिस्तान सेना के सीनियर अफसर जनरल साहिर शमशाद मिर्जा ने ढाका के चार दिवसीय दौरे के दौरान कई बैठकें कीं। इन बैठकों के परिणामस्वरूप एक संयुक्त इंटेलिजेंस-शेयरिंग तंत्र बना। इसका मकसद बंगाल की खाड़ी की निगरानी कहा गया है लेकिन असल में यह भारत की पूर्वी सीमाओं की निगरानी के लिए है।
ISI का कट्टरपंथी मिशन
खुफिया विश्लेषकों का कहना है कि बांग्लादेश में ISI का खास मिशन युवाओं को कट्टरपंथ की तरफ मोड़ना है। इसमें जमात-ए-इस्लामी और इंकलाब मंच जैसे समूहों को जरिया बनाया जा रहा है। 18 दिसंबर को छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद फैली अशांति में भी ISI का असर देखा गया है।
पर्यवेक्षकों का तर्क है कि हादी की मौत के बाद ढाका में भारतीय उच्चायोग और चटगांव में सहायक उच्चायोग पर हमले हुए हैं। इसले बांग्लादेश में बढ़ते भारत विरोध को देखा जा सकता है। अस्थिरता को बढ़ावा देकर कट्टरपंथी तत्व अपना प्रभाव मजबूत कर रहे हैं। ढाका में बैठी यूनुस सरकार इसे रोकने में अनिच्छुक दिखी है।
भारत की बढ़ी चिंता
भारत ने बांग्लादेश में पाकिस्तान के दखल पर अपनी चिंता को कई बार रखा है। 19 नवंबर को दिल्ली में कोलंबो सिक्योरिटी कॉन्क्लेव समिट के दौरान NSA अजीत डोभाल ने बांग्लादेशी एनएसए खलीलुर्रहमान के साथ कथित तौर पर ढाका में ISI सेल का मुद्दा उठाया था। ढाका में पाकिस्तानी दखल को भारत की नेबर फर्स्ट नीति और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए सीधा खतरा माना जा रहा है।














