बीएनपी के संस्थापक जियाउर्रहमान की हत्या 30 मई, 1981 को चटगांव की आधिकारिक यात्रा के दौरान हुई थी। वह अपनी पार्टी नेताओं के अंदरूनी झगड़ों को सुलझाने के लिए एक कार्यक्रम में गए थे। वह चटगांव सर्किट हाउस में ठहरे हुए थे। सर्किट हाउस बेहद पोश और सुरक्षित जगह मानी जाती थी। इसी वजह से इसे राष्ट्रपति के ठहरने के लिए चुना गया।
तड़के 4 बजे हमला
जियाउर्रहमान जिस सर्किट हाउस में ठहरे हुए थे, उस पर तड़के चार बजे हमला किया गया। करीब 4 बजे मध्यम रैंक के सेना के अफसरों ने 11 सबमशीन गन, तीन रॉकेट लॉन्चर और तीन ग्रेनेड-फायरिंग राइफलों से लैस होकर हमला किया। जिया के सुरक्षाकर्मियों ने उनका मुकाबला किया लेकिन फेल रहे। रॉकेट हमलों और गोलीबारी में जियाउरर्हमान के ज्यादातर गार्ड मारे गए। इसके बाद हमलावर सर्किट हाउस की उस इमारत में घुस गए, जहां जिया ठहरे थे।
हमला होने के बाद जियाउर्रहमान का निजी स्टाफ और कुछ अधिकारी तुरंत उनके कमरे में पहुंच गए। दो अधिकारियों ने तय किया कि जिया को बचाने के लिए के लिए कैंटोनमेंट ले जाया जाया। ये बात हो रही रही थी कि इन हमलावरों को कुछ देर रोककर राष्ट्रपति को निकाला जाए। तभी हमलावर सैनिकों के एक और ग्रुप ने सर्किट हाउस में एंट्री मारी और जिया को पूरी तरह से घेर लिया गया।
मशीनगन से मारी गोली
हमलावर सैन्य अफसर तेजी से गोलियां बरसाते हुए जिया के कमरे तक पहुंच गए। इसके बाद मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक ने जियाउर्रहमान पर सबमशीन गन से गोलियां चलाईं। उसने तत्कालीन राष्ट्रपति पर अंधाधुंध गोलियां चलाना जारी रखा, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। इस पूरे हमले को करीब 20 मिनट में अंजाम दिया गया। 20 मिनट के समय में सर्किट हाउस पर हमला और जिया की हत्या करते हुए हमलावर फरार हो गए।
जिया की हत्या के बाद हमलावर सैन्य अधिकारी चटगांव कैंटोनमेंट लौट गए। वे जियाउर्रहमान और दो गार्डों की लाशों को एक मिलिट्री गाड़ी में ले गए। इसके तुरंत बाद चटगांव में सेना के कमांडर मेजर जनरल अबुल मंजूर ने रेडियो पर घोषणा करके विद्रोह का ऐलान किया। ढाका में सेना प्रमुख को बर्खास्त करने का भी ऐलान कर दिया गया।
तख्तापलट हुआ नाकाम
जिया पर हमले की सूचना से सनसनी फैल गई। हालांकि तख्तापलट की कोशिश कुछ ही घंटों में नाकाम हो गई। सेना प्रमुख हुसैन मोहम्मद इरशाद सरकार के प्रति वफादार रहे और सैनिकों को दोबारा कंट्रोल हासिल करने का आदेश दिया। इसमें शामिल ज्यादातर अधिकारियों ने सरेंडर कर दिया। कुछ भागने की कोशिश करते समय कुछ मारे गए। मेजर जनरल मंजूर कुछ दिनों बाद पकड़े गए, जिनकी हिरासत में मौत हुई।
एक मिलिट्री ट्रिब्यूनल ने कुछ ही हफ्तों में आरोपी अधिकारियों पर मुकदमा चलाया। 1981 में तीन हफ्तों से भी कम समय तक चले मुकदमों के बाद बारह सेना अधिकारियों को फांसी दे दी गई। उस समय की रिपोर्टों से पता चला कि इस विद्रोह और जिया की हत्या के पीछे सेना में ट्रांसफर, प्रमोशन और 1971 के मुक्ति युद्ध में लड़ने वाले अधिकारियों और पाकिस्तान से लौटे अधिकारियों के बीच बढ़े मतभेदों को लेकर नाराजगी थी।
जिया की विरासत
जियाउर्रहमान 1971 के मुक्ति युद्ध के समय बांग्लादेश के लिए लड़ने वाले अहम चेहरे थे। रेडियो पर बांग्लादेश की आजादी की घोषणा उन्होंने ही की थी, जिसने उनको बहुत से लोगों के लिए हीरो बना दिया। बांग्लादेश बनने के बाद सेना प्रमुख बने और फिर 1977 में राष्ट्रपति बने। राष्ट्रपति के तौर पर जिया ने 1978 में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी बनाकर बहुदलीय राजनीति को बहाल किया।
जियाउर्रहमान की हत्या के बाद उनकी बेवा खालिदा जिया ने बीएनपी की राजनीति को संभाला। वह इसमें कामयाब रहीं और प्रधानमंत्री पद तक पहुंचीं। खालिदा के बड़े बेटे तारिक रहमान भी बांग्लादेश की राजनीति का एक अहम चेहरे हैं। खालिदा जिया के बीमार होने की वजह से बीएनपी तारिक के नेतृत्व में आगामी चुनाव लड़ रही है।















