हम सभी जानते हैं कि पूर्व जन्मों के कर्म अनुसार व्यक्ति की जन्मकुण्डली में शनि ग्रह पीड़ित होने पर शनि दुःख देने में तत्पर रहता है। शनि के विशेष मारक प्रभाव के कारण कुछ ज्योतिर्विद शनि को मारक ग्रह मेंराजा भी कहते हैं।
- यदि शनि मारक हो, तो शेष मारकों के विचार की आवश्यकता नहीं रहती।
- यदि शनि मारकेशों से सम्बन्ध नहीं रखता हो, तो ज्योतिष गणना के अनुसार जो भी जन्मपत्री में प्रबलतम मारक ग्रह होगा, वही मरण देगा।
- यदि शनि को कम मात्रा भी मारकत्व प्राप्त हो, तो वह स्वयं ही मृत्यु देने वाला होगा। यह तभी सम्भव है जबकि वह पापी हो अर्थात् त्रिकोणेश या केन्द्रेश होकर यदि वह त्रिषडायेश भी होगा तो भी पापी माना जाएगा।
- यदि शनि सप्तमेश के साथ-साथ अष्टमेश भी हो, तो वह स्वयं मारक ही होगा। इसमें सन्देह नहीं करनी चाहिए। उदाहरण कर्क लग्न में यह स्थिति बनती है, जहाँ शनि सप्तमेश के साथ अष्टमेश भी होता है। यहाँ यहीं आशय है कि शनि स्वयं पापी है या मारकेश है या मारक सम्बन्धी है, तो निश्चय ही वह मारक होगा।
- मारक विचार करने से पहले आयु, काल के किस खण्ड तक है, इसका विचार भी अवश्य किया जाता है। जैसे सर्वप्रथम यह देखना चाहिए कि व्यक्ति की साधारण रूप से आयु किस श्रेणी में आ रही है।
आयु की तीन श्रेणी – ज्योतिष शास्त्र में आयु को तीन श्रेणी में बांटा गया है, दीर्घायु, मध्यायु और अल्पायु। जैमिनी ऋषि के मतानुसार गणना द्वारा यह पता करें कि जातक की आयु किस श्रेणी की है, तत्पश्चात् मारकेश का विचार करें। मध्यायु या दीर्घायु की स्थिति में यदि मारकेशों की दशा आती है, तब भी मृत्यु नहीं होती है, अपितु मृत्युतुल्य कष्ट होता है, महामृत्युंजय जप एवं जन्मपत्री अनुसार उपाय करने से मारक दशा न्यूनतम कष्ट देकर बीत जाती है।















