चलिए डिटेल में समझते हैं कि आखिर AI ने किस तरह से एक 100 साल पुराने फैक्ट को मिथक साबित कर दिया है?
फिंगरप्रिंट को लेकर AI ने क्या बताया?
एक अध्ययन में शोध करने वालों ने न्यूरल नेटवर्क पर आधारित खास तरह का AI सिस्टम बनाया, जो कॉन्ट्रास्टिव लर्निंग टेक्नोलॉजी पर काम करता है। दरअसल फिंगरप्रिंट जांचने के परंपरागत तरीके में उंगलियों के निशान की बारीक रेखाओं और बिंदुओं यानी कि मिन्यूशिया को देखा जाता है। हालांकि AI इसकी जगह बड़े पैटर्न जैसे कि रिज ओरिएंटेशन और कर्वेचर पर ध्यान देता है।
इस नए सिस्टम की मदद से AI ने 77% सटीकता से के साथ बता दिया कि दो अलग उंगलियों के निशान एक ही व्यक्ति के हैं या नहीं। गौर करने वाली बात ये है कि जब कई अलग-अलग फिंगरप्रिंट सैंपल इस्तेमाल किए गए, तो सटीकता 99.99% तक बढ़ गई।
शोधकर्ताओं ने न्यूरल नेटवर्क आधारित एक खास AI सिस्टम बनाया जो कॉन्ट्रास्टिव लर्निंग तकनीक पर काम करता है। पारंपरिक तरीकों में उंगलियों के निशान की बारीक रेखाओं और बिंदुओं (मिन्यूशिया) को देखा जाता है, लेकिन इस AI ने बड़े पैटर्न जैसे रिज ओरिएंटेशन और कर्वेचर पर ध्यान दिया। सिस्टम ने 77% सटीकता से बता दिया कि दो अलग उंगलियों के निशान एक ही व्यक्ति के हैं या नहीं। जब कई फिंगरप्रिंट सैंपल एक साथ इस्तेमाल किए गए, तो सटीकता 99.99% से भी ज्यादा हो गई।
फोरेंसिक की दुनिया बदल सकती है ये रिसर्च
रिपोर्ट के मुताबिक ये टेक्नोलॉजी अपराधियों की जांच के लिए बनी संदिग्धों की लिस्ट को 90% तक कम कर सकती है। जैसे कि अगर दो अलग-अलग क्राइम सीन से आंशिक फिंगरप्रिंट मिले हों और 1,000 संदिग्ध हों, तो पारंपरिक तरीके से सभी की दसों उंगलियां मैच करनी पड़तीं हैं। वहीं AI सिस्टम इसे इसे घटाकर सिर्फ 40 संभावित अपराधियों तक ला सकता है। आसान भाषा में कहें, तो पुलिस को अब यह जानने की जरूरत नहीं रहेगी कि निशान किस उंगली का है, क्योंकि सिस्टम अलग-अलग उंगलियों के बीच समानता पहचान लेता है।
रिसर्च में रखा गया इन बातों का ध्यान
वैज्ञानिकों ने इस बात पर खास ध्यान दिया है कि यह सिस्टम सभी लिंग और नस्लीय समूहों पर एक समान तरीके से काम करे। इसे अलग-अलग डेमोग्राफिक ग्रुप्स पर टेस्ट करने के बाद भी परिणाम ठीक मिले। इसके साथ-साथ सिस्टम की ट्रेनिंग और टेस्टिंग में अलग-अलग सेंसर से लिए गए फिंगरप्रिंट्स का इस्तेमाल किया गया ताकि कोई गलती न हो। हालांकि इस सिस्टम को रियल वर्ल्ड में इस्तेमाल के लिए उतारने से पहले और भी बड़े डेटाबेस के टेस्ट से इसे गुजरना होगा।














