ब्रह्मोस-II की रेंज 900 किलोमीटर
रक्षा सूत्रों के मुताबिक अभी जो ब्रह्मोस मिसाइल है, वह मैक 2.8 और मैक 3 (मैक-ध्वनि की गति)की स्पीड से हमले के लिए निकल सकती है। यह बहत कम ऊंचाई जैसे कि समुद्र की सतह के पास से होकर उड़ती है, इसलिए इसका जल्द पता लगा पाना दुश्मन के अत्याधुनिक रडारों के लिए भी मुश्किल हो जाता है। इसके लिए इसमें इंटर्नल नैविगेशन और सैटेलाइट गाइडेंस के कॉम्बिनेशन का इस्तेमाल किया जा है। भारत और रूस की ओर से संयुक्त रूप से विकसित की जा रही ब्रह्मोस-II मिसाइलों की रेंज मौजूदा 290 किलोमीटर से बढ़ाकर 450 और 900 किलोमीटर की जा रही है।
अगले दशक में भी पकड़ से बाहर
ब्रह्मोस-II मिसाइल जमीन, जल, हवा और यहां तक कि पनडुब्बियों से भी दागी जा सकेगी। अधिकारियों के मुताबिक कम से कम अगले एक दशक तक भी इस वेपन सिस्टम को इंटरसेप्ट करना दुश्मन के रडारों के लिए बहुत ही ज्यादा मुश्किल होगा। एक ब्रह्मोस एयरोस्पेस अधिकारी ने कहा कि अगर दुश्मन अपने रडार, सेंसर और स्पेस आधारित ट्रैकिंग क्षमताओं को कितना भी अपग्रेड कर लें, तो भी ब्रह्मोस-II मिसाइल की तोड़ निकाल पाना मुश्किल होगा।
ब्रह्मोस-II हाइपरसोनिक वेरिएंट
यही सोचकर भारत ने अब ब्रह्मोस-II मिसाइल पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया है, जो कि इसका एक हाइपरसोनिक वेरिएंट होगा, जो मैक 7 से ज्यादा स्पीड हासिल (8,500 किलोमीटर प्रति घंटे) कर सकता है। इस मिसाइल की पहली टेस्ट फ्लाइट 2028 के आसपास हो सकती है। माना जा रहा है कि यह मिसाइल हाइपरसोनिक ग्लाइड क्षमता वाली होगी। एक्सपर्ट मानते हैं कि इसकी वजह से किसी भी डिफेंस नेटवर्क के लिए इसे ट्रैक करना और भी असंभव हो जाएगा।
2030 के दशक में भी जलवा
जानकारों का कहना है कि हमारे पड़ोस के दुश्मन अगर एडवांस्ड गैलियम नाट्राइड-बेस्ड एईएसए रडारों का भी इंतजाम कर लेते हैं, तो भी इन ब्रह्मोस मिसाइलों को इंटरसेप्ट करना उनके लिए टेढ़ी खीर बनी रहेगी। ऐसे में जब ब्रह्मोस के सुपरसोनिक और हाइपरसोनिक दोनों वेरिएंट पर काम चल रहा है, जानकार मानते हैं कि 2030 के दशक में भी यह मिसाइल भारतीय सशस्त्र सेना की जवाबी क्षमता को मजबूत बनाए रखेगी।
ऑपरेशन सिंदूर में अचूक साबित हुए
भारतीय वायु सेना ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के खिलाफ ब्रह्मोस मिसाइल का इस्तेमाल किया था। इसे एसयू-30एमकेआई फाइटर जेट से लॉन्च किया गया था, जिसमें इस मिसाइल ने एक बार फिर से अपनी सटीकता और हमले की क्षमता का अचूक और शानदार प्रदर्शन करके दिखाया। पाकिस्तान को चीन से मिले एयर डिफेंस सिस्टम धूल फांकते रह गए और ब्रह्मोस ने अपने कमांड का पालन करके दिखा दिया।
कम ऊंचाई की वजह से अभेद्य
रक्षा उद्योग से जुड़े अधिकारियों ने ब्रह्मोस की ताकत के बारे में बताने के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध का भी जिक्र किया है। इनका कहना है कि यहां भी रूस के पी-800 ओनिक्स (P-800 Oniks) को इंटरसेप्ट करना नामुमकिन साबित हुआ। जबकि, यहां यूक्रेन की तरफ से अमेरिका और यूरोप के एडवांस से एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम का इस्तेमाल हो रहा है। पी-800 ओनिक्स को टेक्नोलॉजी में ब्रह्मोस का पूर्वज माना जाता है। इस क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि कम ऊंचाई पर उड़ान भरने वाले तेज गति की क्रूज मिसाइलों को ट्रैक करके तबाह करना अभी भी दुनिया के लिए एक चुनौती बनी हुई है।














