तुर्की लंबे समय से चाहता है कि वह लाल सागर पर नजर रख सके। इसके लिए वह सोमालिया में सैन्य अड्डा बनाना चाहता था लेकिन यह संभव नहीं हो पाया। लेकिन एक्सपर्ट का मानना है कि इजरायल और सोमालीलैंड डील के बाद अब तुर्की का यह प्लान सफल हो सकता है। उन्होंने कहा कि सोमालिया के राष्ट्रपति अब तुर्की के साथ इस सैन्य अड्डे को लेकर बातचीत कर सकते हैं। तुर्की ने पिछले 13 साल में सोमालिया के अंदर बहुत बड़े पैमाने पर निवेश किया है। यूएई और बहरीन को छोड़कर ज्यादातर मुस्लिम देशों ने इजरायल के कदम की आलोचना की है। पश्चिम एशिया के कई विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले समय में इजरायल हजारों की तादाद में फलस्तीनी लोगों को सोमालीलैंड भेज सकते हैं।
इजरायल ने तुर्की को दिया बड़ा झटका
वहीं कुछ अन्य विशेषज्ञ इसे हूतियों पर खतरे से जोड़कर देख रहे हैं। एक्सपर्ट का यह भी कहना है कि इजरायल के इस कदम का एक बड़ा उद्देश्य अफ्रीका में तुर्की के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना है। तुर्की का इस इलाके में सैन्य अड्डा है। इसके अलावा यूएई भी अफ्रीका के मुहाने पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। इस बीच मंगलवार को तुर्की के राष्ट्रपति सोमालिया के राष्ट्रपति से मिल रहे हैं। माना जा रहा है कि इस मुलाकात में तुर्की के सोमालिया के लास कोराय में सैन्य अड्डे और नेवल बेस का रास्ता साफ हो सकता है। इससे तुर्की को सीधे लाल सागर तक पहुंच मिल जाएगी। यह इलाका सोमालीलैंड के दावे वाले में है। तुर्की सोमालीलैंड से भी अच्छे रिश्ते बनाए हुए था लेकिन अब इजरायल की एंट्री के बाद उसे बड़ा झटका लगा है। सोमालीलैंड में तुर्की का महावाणिज्य दूतावास मौजूद है।
क्या है सोमालीलैंड का इतिहास
सोमालीलैंड अफ्रीका के हॉर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्र में स्थित है। सोमालीलैंड काफी लंबे समय से खुद को एक स्वतंत्र देश मानता रहा है। हालांकि, इजरायल के अलावा दुनिया के किसी भी देश ने इसे एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं दी है। सोमालीलैंड के एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में आने से पहले इसका एक लंबा इतिहास रहा है। ऐसा पहली बार नहीं है जब सोमालीलैंड का मुद्दा चर्चा में आया और वैश्विक राजनीति में हलचल पैदा हो गई। इससे पहले भी ऐसा हो चुका है। सोमालीलैंड पहले ब्रिटिश सोमालीलैंड था, जो 1960 में आजाद हुआ। इसके बाद यह इतालवी सोमालीलैंड के साथ मिल गया और सोमालिया बना। हालांकि, 1991 में सोमालिया में गृहयुद्ध छिड़ गया और देश अराजकता की स्थिति में डूब गया। तभी सोमालीलैंड अस्तित्व में आया। हालांकि, सोमालिया आज भी यही कह रहा है कि सोमालीलैंड उसका अभिन्न हिस्सा है।
सोमालीलैंड चाहता है कि दुनिया उसे एक स्वतंत्र देश के रूप में स्वीकार करे। कुछ देश इस पर विचार कर रहे हैं, जिससे भू-राजनीतिक बहस तेज हो गई है। सोमालीलैंड रेड सी (लाल सागर) और अदन की खाड़ी के पास स्थित है, जो वैश्विक व्यापार और सैन्य रणनीति के लिहाज से बेहद अहम इलाका है। लाल सागर के पास स्थित होने की वजह से अमेरिका और इजरायल जैसे देशों की दिलचस्पी इसमें काफी ज्यादा है। वहीं मुस्लिम देश नहीं चाहते कि इसे एक अलग देश के रूप में मान्यता मिले। सोमालीलैंड ने बीते तीन दशकों में अपना अलग प्रशासन, संसद, संविधान, चुनावी व्यवस्था, मुद्रा और सुरक्षा तंत्र विकसित कर लिया है। सोमालीलैंड में सोमालिया की तुलना में ज्यादा शांति है। सोमालिया अल-शबाब जैसे आतंकी संगठनों की हिंसा से जूझता रहा है। इसी वजह से सोमालीलैंड खुद को “डी-फैक्टो स्टेट” यानी व्यवहार में एक देश मानता है।
सोमालीलैंड पर भारत का क्या है रुख
भारत समेत अधिकांश देश सोमालिया की संप्रभुता और एकता का समर्थन करते हैं और सोमालीलैंड को अलग देश के रूप में मान्यता नहीं देते। भारत अफ्रीकी संघ की नीति के अनुरूप संतुलित रुख अपनाता रहा है। सोमालीलैंड को एक देश के रूप में मान्यता देने के पीछे इजरायल की अपनी रणनीति है। दरअसल, लाल सागर और अदन की खाड़ी के करीब स्थित सोमालीलैंड का समर्थन कर इजरायल हूती विद्रोहियों की गतिविधियों पर नजर रखना चाहता है। इजरायल लंबे समय से मिडिल ईस्ट और अफ्रीकी देशों के साथ अपने संबंध सुधारने की कोशिश में लगा है। हालांकि, गाजा में उसके युद्ध ने इस रास्ते को और भी कठिन बना दिया। सोमालीलैंड को मान्यता देने के बाद इजरायल अमेरिका के समर्थन का इंतजार कर रहा है।
इजरायल लाल सागर में अपनी पैठ बनाना चाहता है, और इसके लिए सोमालीलैंड एक सहयोगी के तौर पर उसकी मदद कर सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इजरायल का सोमालीलैंड को मान्यता देना लाल सागर में भू-राजनीति के आयाम को बदल सकता है। सोमालीलैंड के जरिए इजरायल को बेरबेरा पोर्ट तक डायरेक्ट पहुंच मिल सकती है। ऐसे में लाल सागर में हूतियों के खतरे के बीच ईरानी प्रभाव को कम करने और सुरक्षा बढ़ाने में मजबूती मिल सकती है। सोमालिया के उत्तर-पश्चिमी हिस्से पर सोमालीलैंड का नियंत्रण है। इसकी सीमा उत्तर-पश्चिम में जिबूती और पश्चिम और दक्षिण में इथियोपिया से लगती है। यमन के सामने लाल सागर के तट पर बसा यह इलाका इजरायल के लिए खास अहमियत रखता है।













