इंसान की नकल के लिए क्या करेगा एआई?
अनुपम मित्तल ने अपने पोस्ट (ref.) में समझाया कि एआई मौजूदा वक्त में जितना डेवलप है, उसे इंसान के दिमाग की बराबरी करने के लिए एक फुटबॉल ग्राउंड जितने बड़े डेटा सेंटर की जरूरत होगी। सिर्फ इंसान की नकल करने के लिए उस डेटा सेंटर को लगातार चलाना होगा, जबकि इंसानी दिमाग यह काम करीब 20 वॉट की ऊर्जा पर कर लेता है। मित्तल ने कहा कि एआई अगर इंसानी दिमाग के बायोलॉजिकल हिस्सों की नकल करने लगे तो उसे पृथ्वी के आकार के एक कंप्यूटर की जरूरत होगी। उन्होंने लिखा कि लोग यह फर्क भूल जाते हैं।
एआई की खूबियां भी बताईं
अनुपम ने एआई की खूबियां भी बताईं। यह माना कि मौजूदा वक्त में ऑटोमेशन, बार-बार किए जाने वाले काम और किसी पैटर्न को पहचानने में एआई खूब काबिल है। हालांकि उनका मानना है कि क्रिएटिविटी, जजमेंट जैसी चीजें तुरंत डेवलप नहीं हो सकतीं। इंसान ने इन्हें लाखों साल में डेवलप किया है। मित्तल का कहना है कि अगर एआई को इंसान द्वारा की जाने वाली क्रिएटिविटी की जगह लेनी है तो यह काम सिर्फ GPUs (ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट्स) से नहीं चलेगा। इसके लिए इंटेलिजेंस को कंप्यूट करने के तरीके में बड़ा बदलाव करना होगा।
समझदारी का नहीं बनेगा विकल्प
अनुपम का मानना है कि एआई एक पावरफुल टूल तो बना रहेगा, लेकिन वह इंसानी समझदारी का विकल्प नहीं बन पाएगा। अनुपम को लगता है कि दुनियाभर की जटिलता, इंसानी दिमाग में बस जाती है। वह ऑक्सीजन पर चलती है और बल्ब से कम हीट पैदा करती है। यह वो ताकत है, जिसकी नकल एआई नहीं कर सकता है।















