भारत के जलपाईगुड़ी में हुआ जन्म
खालिदा जिया का जन्म 1945 में हुआ था, जो अविभाजित भारत के ग्रेटर दिनाजपुर का हिस्सा था। भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद, भारतीय हिस्से वाले क्षेत्र को ‘पश्चिम बंगाल’ नाम मिला। वहीं, पूर्वी बंगाल ‘पाकिस्तान’ का हिस्सा बन गया। बाद में 16 दिसंबर 1971 को पूर्वी बंगाल को आजादी मिली और वह बांग्लादेश के रूप में अस्तित्व में आया।
जियाउर रहमान से शादी
भारत के विभाजन के बाद उनका परिवार पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) आ गया। 1960 में उन्होंने जियाउर रहमान से शादी की, जो उस समय पाकिस्तानी सेना में कैप्टन थे। जियाउर रहमान ने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना के खिलाफ विद्रोह किया था। बाद में वह 1977 में बांग्लादेश के राष्ट्रपति बने और अगले साल बीएनपी की स्थापना की।
ऐसे शुरू हुआ राजनीतिक सफर
- 30 मई, 1981 को जियाउर रहमान की हत्या के बाद बीएनपी एक गंभीर संकट में पड़ गई। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं ने खालिदा जिया से पार्टी का नेतृत्व संभालने का आग्रह किया।
- 12 जनवरी, 1984 को उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया और उसी साल 10 मई को वह बीएनपी की अध्यक्ष चुनी गईं। उन्होंने 1993, 2009 और 2016 में हुए पार्टी परिषदों में भी अपनी स्थिति बरकरार रखी, जिससे वह लगभग 41 वर्षों तक बीएनपी की अध्यक्ष रहीं।
- 1991 के संसदीय चुनाव में बीएनपी की जीत के बाद, खालिदा जिया बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। 1996 के राष्ट्रीय चुनावों के बाद, जो प्रमुख विपक्षी दलों के बहिष्कार के बीच हुए थे, उन्होंने लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री का पद संभाला।
भारत के साथ कठोर रिश्ते
प्रधानमंत्री के रूप में खालिदा जिया का कार्यकाल भारत-बांग्लादेश संबंधों के सबसे कठिन दौर में से एक था। इस दौरान दोनों देशों के बीच शत्रुता और कई रणनीतिक अवसर गंवाने की स्थिति देखी गई। अपने शुरुआती वर्षों में खालिदा जिया ने नई दिल्ली के प्रति एक सतर्क और कई मायनों में विरोधी रुख अपनाया, जिसने एक दशक से अधिक समय तक द्विपक्षीय संबंधों को आकार दिया।
भारत के खिलाफ विरोध की क्या वजह थी?
खालिदा जिया ने लगातार भारत के साथ सड़क मार्ग से आवागमन और कनेक्टिविटी पहलों का विरोध किया। यह विरोध उन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए और बाद में 2014 तक दो बार विपक्ष की नेता के रूप में भी जारी रखा। प्रधानमंत्री के तौर पर, उन्होंने भारत को उसके पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुंचने के लिए बांग्लादेशी क्षेत्र से आवागमन के अधिकार देने से साफ इनकार कर दिया था। उनका तर्क था कि ऐसे समझौते बांग्लादेश की सुरक्षा और संप्रभुता से समझौता करेंगे। उन्होंने यहां तक कहा कि भारतीय ट्रकों का बांग्लादेशी सड़कों पर बिना टोल के आवागमन ‘गुलामी’ के बराबर है।
राजनयिक समझौतों का भी विरोध
उनका विरोध राजनयिक समझौतों तक भी फैला। जिया ने 1972 की भारत-बांग्लादेश मैत्री संधि के नवीनीकरण का विरोध किया, जिसे रणनीतिक विशेषज्ञों ने सैन्य दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता था। उनका तर्क था कि संधि ने बांग्लादेश को ‘जकड़’ लिया था और उसकी स्वतंत्रता को सीमित कर दिया था। उन्होंने अपनी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) को ‘बांग्लादेश के हितों का रक्षक’ के रूप में पेश किया और अक्सर अपनी नीतियों को भारत के प्रभुत्व के खिलाफ बचाव के रूप में प्रस्तुत किया।















