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  • गिरफ्तारी से पहले की जमानत से इनकार, सुप्रीम कोर्ट ने बोलने की आजादी के अधिकार पर कह दी बड़ी बात

    नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि बोलने की आजादी की कोई सीमा नहीं है। कोर्ट ने बेंगलुरु के एक 24 वर्षीय चार्टर्ड अकाउंटेंसी के छात्र को अग्रिम जमानत देने से मना कर दिया। इस छात्र ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर ‘जवाहरलाल नेहरू सटायर’ नाम के पैरोडी


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    By Azad Hind Desk दिसम्बर 20, 2025
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    नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि बोलने की आजादी की कोई सीमा नहीं है। कोर्ट ने बेंगलुरु के एक 24 वर्षीय चार्टर्ड अकाउंटेंसी के छात्र को अग्रिम जमानत देने से मना कर दिया। इस छात्र ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर ‘जवाहरलाल नेहरू सटायर’ नाम के पैरोडी अकाउंट से प्रधानमंत्री और उनकी मां के बारे में आपत्तिजनक पोस्ट किए थे। कोर्ट ने छात्र को गुजरात हाई कोर्ट में जाकर राहत मांगने की सलाह दी है।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘जो लोग बोलने की आजादी का दुरुपयोग करते हैं, उन्हें अदालतों से विवेकाधीन राहत नहीं मिलनी चाहिए।’ कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें अहमदाबाद पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR को रद्द करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने छात्र को गिरफ्तारी से सुरक्षा देने या अग्रिम जमानत देने से भी मना कर दिया, ताकि वह जांच में शामिल हो सके।

    आरोपी छात्र के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल ने सिर्फ एक पोस्ट पर सवाल पूछा था, जिसे उन्होंने खुद नहीं बनाया था। वकील ने यह भी कहा कि इस वजह से उन पर महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि गुजरात पुलिस बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए उनके घर गई और बेंगलुरु पुलिस स्टेशन में उन्हें हिरासत में ले लिया।

    वकील ने आगे कहा कि पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने की धमकी दे रही है। छात्र जांच में सहयोग करने के लिए तैयार है, लेकिन उसे गिरफ्तारी से सुरक्षा चाहिए। चीफ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची और विपुल एम. पंचोली की बेंच ने कहा, ‘आपको उनके (प्रधानमंत्री की मां) खिलाफ इस्तेमाल किए गए अपमानजनक शब्दों के लिए कोई पछतावा या खेद नहीं है।’ वकील ने कहा कि वह सिर्फ एक छात्र है और अपनी पोस्ट के लिए पछता रहा है। उसने सुप्रीम कोर्ट से उसे गिरफ्तारी से बचाने की गुहार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने फिर से कहा, ‘बोलने की आजादी के अधिकार का दुरुपयोग करने वाले याचिकाकर्ता को अदालत से विवेकाधीन राहत नहीं मिलनी चाहिए।’

    क्या है मामला?

    गुजरात के एक निवासी ने 7 नवंबर को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में कहा गया था कि आरोपी ने प्रधानमंत्री और उनकी मां के खिलाफ अपमानजनक सामग्री पोस्ट की थी, जिससे उनकी गरिमा, प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत की छवि खराब हुई। पुलिस ने FIR दर्ज की और आरोपी से पूछताछ के लिए बेंगलुरु गई। FIR दर्ज होने के बाद एक्स ने अकाउंट को ब्लॉक कर दिया है।

    याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि अहमदाबाद पुलिस ने बेंगलुरु पुलिस के साथ मिलकर उसके मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 14, 19 और 21) का उल्लंघन किया। उन्होंने उसे अवैध रूप से साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन ले जाकर गिरफ्तारी की धमकी दी। उसे घंटों हिरासत में रखा गया और फिर छोड़ दिया गया, लेकिन अहमदाबाद में जांच में शामिल होने के लिए कहा गया। उसने डर जताया कि अहमदाबाद पहुंचने पर उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा।

    और लोगों के लिए बहुत बड़ा सबक

    यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं को लेकर एक महत्वपूर्ण सवाल उठाता है। कोर्ट का कहना है कि किसी भी अधिकार का इस्तेमाल जिम्मेदारी से किया जाना चाहिए। पैरोडी अकाउंट के जरिए की गई पोस्ट को भी अगर किसी की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला या अपमानजनक माना जाता है, तो उस पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। कोर्ट ने छात्र को सीधे राहत देने से इनकार कर दिया, लेकिन उसे निचली अदालत में अपनी बात रखने का मौका दिया है। यह दिखाता है कि कानून किसी भी तरह के दुरुपयोग को बर्दाश्त नहीं करता, भले ही वह सोशल मीडिया पर हो।

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