ताजिकिस्तान लंबे समय से अफगानिस्तान में तालिबान का विरोध करता रहा है। दोनों देशों की 1,340 किलोमीटर की लंबी सीमा लगती है, जो काफी ज्यादा असुरक्षित बन गया है। ताजिकिस्तान और अफगानिस्तान की 1,340 किलोमीटर लंबी सीमा मुख्य रूप से पांज नदी के साथ-साथ पहाड़ी और दुर्गम इलाकों से गुजरती है, इसीलिए सेना के लिए चप्पे-चप्पे की निगरानी करना लगभग नामुमिकन है। जिसका फायदा हमलावर उठाते हैं। ताजिकिस्तान ने हमलावरों को ‘आतंकवादी’ कहा है।
ताजिकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर तनाव क्यों है?
गुरुवार को ताजिकिस्तान की नेशनल सिक्योरिटी के लिए स्टेट कमेटी ने एक बयान में कहा कि “एक आतंकवादी संगठन के तीन सदस्य” मंगलवार को ताजिक इलाके में घुस आए थे। कमेटी ने आगे कहा कि उन लोगों का पता अगली सुबह चला और उन्होंने ताजिक बॉर्डर गार्ड्स के साथ गोलीबारी की। इसमें कहा गया कि तीन घुसपैठियों सहित पांच लोग मारे गए। ताजिक अधिकारियों ने हथियारबंद लोगों का नाम नहीं बताया और न ही यह बताया कि वे किस ग्रुप के थे। हालांकि, अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने घटनास्थल से तीन M-16 राइफल, एक कलाश्निकोव असॉल्ट राइफल, साइलेंसर वाली तीन विदेशी पिस्तौल, 10 हैंड ग्रेनेड, एक नाइट-विजन स्कोप और विस्फोटक बरामद किए हैं।
दुशांबे ने कहा कि पिछले एक महीने में अफगानिस्तान के बदख्शां प्रांत से यह तीसरा हमला था, जिसमें उसके जवानों की मौत हुई है। ताजिक अधिकारियों ने गुरुवार को कहा कि ये हमले “साबित करते हैं कि तालिबान सरकार अपनी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों और सुरक्षा सुनिश्चित करने और आतंकवादी संगठनों के सदस्यों से लड़ने के लगातार वादों को पूरा करने में नाकाम है। ये बार-बार गैर-ज़िम्मेदारी और गैर-प्रतिबद्धता दिखा रही है।” ताजिकिस्तान ने तालिबान से ताजिक लोगों से माफी मांने और सीमा पर सुरक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाने की मांग की है। अलजजीरा के मुताबिक, ताजिकिस्तान ने यह नहीं बताया है कि हमलों का मकसद क्या हो सकता है, लेकिन ऐसा लगता है कि इन हमलों में इलाके में काम करने वाली चीनी कंपनियों और नागरिकों को निशाना बनाया गया है।
चीनी नागरिकों और कंपनियों पर हमले का मकसद क्या है?
ताजिकिस्तान ने सबसे ज्यादा कर्ज चीन से लिए हुए हैं और ताजिकिस्तान के ज्यादातर प्रोजेक्ट चीनी कंपनियां चला रही हैं। चीन, ताजिकिस्तान में सड़क निर्माण, सुरंग, बिजली परियोजनाओं और सोने की खदानों में शामिल हैं। चीन और ताजिकिस्तान 477 किलोमीटर लंबी सीमा भी शेयर करते हैं, जो पूर्वी ताजिकिस्तान में ऊंचे पामीर पहाड़ों से होकर गुजरती है, जो चीन के शिनजियांग क्षेत्र से सटा हुआ है। नवंबर के आखिरी हफ्ते में दो अलग-अलग हमलों में चीनी नागरिकों को निशाना बनाया गया।
एक हमले में ड्रोन से विस्फोटक गिराकर चीनी गोल्ड माइनिंग कंपनी के कैंप पर हमला किया गया, जबकि दूसरे में सड़क निर्माण परियोजना पर काम कर रहे मजदूरों पर अंधाधुंध फायरिंग हुई, जिनमें दो चीनी मजदूर मारे गये। इन हमलों के बाद चीन ने ताजिकिस्तान में अपने नागरिकों के लिए सुरक्षा अलर्ट जारी किया है। ताजिक अधिकारियों ने कहा कि ये हमले अफगानिस्तान के बदख्शां प्रांत के गांवों से हुए थे, लेकिन उन्होंने हमलों में शामिल लोगों या संगठन के बारे में नहीं बताया। पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत और अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर भी चीनी नागरिकों पर हमले हुए हैं।
ताजिकिस्तान में कौन बार बार कर रहा हमले?
अलजजीरा ने एक्सपर्ट्स के हवाले से कहा है कि इन हमलों में इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (ISKP) का हाथ हो सकता है। ISKP लंबे समय से तालिबान को कमजोर करने के लिए विदेशी नागरिकों और परियोजनाओं को निशाना बनाता रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इन हमलों का मकसद सिर्फ ताजिकिस्तान या चीन को डराना नहीं है, बल्कि यह संदेश देना भी है कि तालिबान क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने में असमर्थ है। इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप थिंक टैंक में काबुल के एक एनालिस्ट इब्राहिम बहिस ने कहा कि “ISKP ने अफगानिस्तान के अंदर विदेशियों पर हमला किया है और अपनी रणनीति के एक मुख्य हिस्से के तौर पर अफगानिस्तान के अंदर विदेशियों पर हमले किए हैं। इनका मकसद तालिबान के प्रशासन से भरोसा तोड़ना है।”
ताजिकिस्तान में हो रहे हमलों पर तालिबान की प्रतिक्रिया
तालिबान ने 28 नवंबर को चीनी मजदूरों की हत्याओं पर “गहरा दुख” जताया है। तालिबान ने हिंसा का आरोप एक अनजान हथियारबंद ग्रुप पर लगाया है, जिसके बारे में उसने कहा कि वह “इलाके में अराजकता और अस्थिरता फैलाने और देशों के बीच अविश्वास पैदा करने की कोशिश कर रहा है”। तालिबान ने ताजिकिस्तान को पूरे सहयोग का भरोसा दिलाया है। तालिबान के गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी ने कहा कि काबुल 2020 के दोहा समझौते के लिए प्रतिबद्ध है, जो अमेरिका के साथ एक समझौता है जिसके तहत अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों को धीरे-धीरे हटाया जाएगा, जिसके बदले में तालिबान यह पक्का करेगा कि अफगानिस्तान का इस्तेमाल दूसरे देशों पर हमला करने के लिए बेस के तौर पर न हो। लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि तालिबान के लिए ऐसा करना बहुत मुश्किल है। वो ISKP को नहीं रोक पाएगा, लिहाजा ताजिकिस्तान में अभी हमलों की संख्या और बढ़ने वाली है।














