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  • पहली बार गणतंत्र दिवस पर दिखेगा खास नजारा, कर्तव्य पथ पर डबल हंप ऊंट और जांस्कार घोड़े आएंगे नजर

    नई दिल्ली : इस बार गणतंत्र दिवस परेड में कर्तव्य पथ में पहली बार इंडियन आर्मी के डबल हंप ऊंट और जांस्कार घोड़े के साथ ही ड्रोन को मार गिराने के लिए ट्रेंड किए गए ईगल (चील) भी दिखेंगे। आर्मी की रिमाउंट एंड वेटरनरी कोर (RVC) के दस्ते में ये सब दिखाई देंगे। वेटरनरी कोर


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    By Azad Hind Desk दिसम्बर 30, 2025
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    नई दिल्ली : इस बार गणतंत्र दिवस परेड में कर्तव्य पथ में पहली बार इंडियन आर्मी के डबल हंप ऊंट और जांस्कार घोड़े के साथ ही ड्रोन को मार गिराने के लिए ट्रेंड किए गए ईगल (चील) भी दिखेंगे। आर्मी की रिमाउंट एंड वेटरनरी कोर (RVC) के दस्ते में ये सब दिखाई देंगे। वेटरनरी कोर के इस दस्ते को कैप्टन हर्षिता लीड करेंगी। आर्मी के वेटरनरी कोर में करीब तीन साल पहले ही महिला ऑफिसर्स को लेना शुरू किया गया और कैप्टन हर्षिता पहले बैच में शामिल थीं।

    ईस्टर्न लद्दाख में आर्मी के मददगार- बैक्ट्रियन ऊंट

    ईस्टर्न लद्दाख की विषय परिस्थियों में लॉजिस्टिक सपोर्ट के लिए डबल हंप ऊंट और जांस्कार पोनी का इस्तेमाल किया जा रहा है। कर्तव्य पथ पर जब ये गुजरेंगे तो ईस्टर्न लद्दाख की उन विषय परिस्थियों की याद भी दिलाएंगे जिनमें हमारे देश के सैनिक हर मौसम में हर वक्त मुस्तैद रहते हैं। दस्ते में दो बैक्ट्रियन (दो कूबड़ वाले) ऊंट शामिल होंगे। करीब दो साल पहले ईस्टर्न लद्दाख में एक नई पहल के तहत इनका इस्तेमाल शुरू किया गया।

    इनका इस्तेमाल अंतिम छोर तक जरूरी सामान पहुंचाने और पठारी इलाकों की रेतीली जमीन में गश्त के लिए किया जाता है। ऊंटों के इस उपयोग से स्थानीय लोगों को रोज़गार मिला है और लद्दाख में तेजी से घटती डबल हंप्ड ऊंटों की आबादी के संरक्षण का रास्ता भी खुला है। ये माइनस 20 डिग्री तक आराम से काम कर सकते हैं और 15 से 18 हजार फीट की ऊंचाई में इनका इस्तेमाल किया जा रहा है। ये 200 किलो तक का वजन उठा सकते हैं।

    माइनस 40 डिग्री में पहुंचाते हैं रसद

    ईस्टर्न लद्दाख में आर्मी जांस्कार पोनी का भी इस्तेमाल कर रही है। ये मजबूत और सहनशील देशी नस्ल के घोड़े हैं, जो बेहद कठिन मौसम में भी कम बीमार पड़ते हैं। ऊंचाई वाले इलाकों में ये बहुत उपयोगी हैं और सामान और रसद पहुंचाने में अहम भूमिका निभाते हैं। ये माइनस 40 डिग्री तापमान में भी आराम से अपना काम कर सकते हैं। इनका इस्तेमाल 18 हजार फीट की ऊंचाई पर किया जा रहा है। ये 70 किलो तक का वजन ढो सकते हैं। गश्त के लिए भी इनका इस्तेमाल किया जा रहा है। आर्मी जांस्कार पोनी से म्यूल (खच्चरों) को रिप्लेस कर रही है।

    ड्रोन गिराने वाले चील

    रिमाउंट एंड वेटरनरी कोर के दस्ते में चार रेप्टर्स भी दिखेंगे। ये ड्रोन को मार गिराने वाले चील हैं। जिन्हें इस तरह ट्रेंड किया गया है जो पलभर में लपकर ड्रोन को नीचे गिरा सकते हैं। अभी इनका ऑपरेशनल इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है लेकिन दूसरे देशों की मिलिट्री के साथ युद्धाभ्यास में कई बार इन्हें भी शामिल किया गया है और इनकी ट्रेंनिंग जारी है।

    ये चील भारतीय सेना के कैनाइन सोल्जर यानी ट्रेंड डॉग्स के साथ मिलकर एंटी ड्रोन सिस्टम का काम करेंगे और दुश्मन के ड्रोन को मार गिराएंगे। चीलों की खासियत होती है कि वह अपने मजबूत पंखों और पंजों से अपने दुश्मन पर झपटते हैं। ड्रोन भी हवा में उड़ता ऑब्जेक्ट है जिसे ट्रेंड चील पलक झपकते ही झपट सकते हैं।

    इस तरह चील प्राकृतिक तौर पर ही एंटी ड्रोन रोल के लिए फिट है। साथ ही दस्ते में पांच इंडियन ब्रीड में 10 कैनाइन सोल्जर (ट्रेंड डॉग्स) भी होंगे। ये मुढोल हाउंड, रामपुर हाउंड , चिप्पीपराई, कॉम्बाई, राजा पलियम ब्रीड के हैं। साथ ही कन्वेंशल ब्रीड के भी ट्रेंड डॉग्स होंगे।

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