कैसे बनेगी बिजली?
फिजिकल रिव्यू रिसर्च की रिपोर्ट (Ref.) बताती है कि प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर क्रिस्टोफर एफ. चिबा ने इस काम की अगुवाई की। पृथ्वी के अंदर गर्म मेटल की हलचल से एक बड़ा मेग्नेटिक फील्ड बनता है, जो पूरे ग्रह को घेरे रहता है। पृथ्वी जब घूमती है, तो यह क्षेत्र अंतरिक्ष में स्थिर रहता है। इस वजह से पृथ्वी पर मौजूद कोई भी चीज इस मेग्नेटिक फील्ड से गुजरती रहती है। आमतौर पर इससे बिजली बन सकती है, लेकिन इलेक्ट्रॉन जल्दी ही अपनी जगह बदलकर इस प्रभाव को खत्म कर देते हैं। वैज्ञानिकों ने एक खास तरीका ढूंढा जिसमें यह रुकावट न आए। ऐसे में वैज्ञानिकों ने एक ऐसी चीज चुनी जो मेग्नेटिक फील्ड को मोड़ती है, इससे थोड़ी बिजली बनती रहती है।
कैसे हुआ इसका प्रयोग?
इससे बिजली बनती है या नहीं, इसको जांचने के लिए एक अंडरग्राउंड रूम का इस्तेमाल हुआ। वोल्टेज बहुत कम था, अंधेरे से भरी अंडरग्राउंड जगह में प्रयोग हुआ, जहां बाहरी शोर कम था। बाद में एक नॉर्मल जगह पर भी यह प्रयोग हुआ। यहां शोर ज्यादा था लेकिन नतीजा नहीं बदला। हालांकि, करंट मोड में भी बहुत कम करंट मापा गया। यह बिजली आम उपकरणों के लिए लाखों गुना कम है, लेकिन यह साबित जरूर हुआ कि इससे बिजली बनती है। भविष्य में बड़ी मात्रा में बिजली बनाने का काम किया जा सकता है।
विज्ञानिकों में विवाद किस बात का?
यह काम अभी शुरुआती चरण में है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सिद्धांत गलत है और बहस जारी है। अगर यह सही साबित हुआ और बड़ा बनाया गया, तो दूर-दराज के सेंसर या वैज्ञानिक उपकरण बिना बैटरी के चल सकते हैं। कई छोटे सिलेंडर जोड़कर ज्यादा वोल्टेज बनाया जा सकता है। प्रोफेसर चिबा कहते हैं कि सबसे जरूरी है कोई दूसरी टीम इस प्रयोग को दोहराए या गलत साबित करे। अगर सफल हुआ, तो यह साफ और हमेशा उपलब्ध ऊर्जा का नया स्रोत बनेगा।















