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  • वैज्ञानिकों ने दूर की सोलर पावर से जुड़ी बड़ी समस्या, बना दिया ऐसा सेल जो 30% ज्यादा पावरफुल, समझें क्या है इसके पीछे की तकनीक?

    दुनिया भर में सोलर का इस्तेमाल बढ़ रहा है, ताकि साफ तरह की ऊर्जा का इस्तेमाल हो सके। अब वैज्ञानिक पतली शीट वाली सोलर सेल ों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। ये सेल पुरानी सिलिकॉन वाली सेलों से सस्ती बनती हैं, आसानी से बनाई जा सकती हैं और हल्की होती हैं। दक्षिण कोरिया के


    Azad Hind Desk अवतार
    By Azad Hind Desk दिसम्बर 21, 2025
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    दुनिया भर में सोलर का इस्तेमाल बढ़ रहा है, ताकि साफ तरह की ऊर्जा का इस्तेमाल हो सके। अब वैज्ञानिक पतली शीट वाली सोलर सेल ों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। ये सेल पुरानी सिलिकॉन वाली सेलों से सस्ती बनती हैं, आसानी से बनाई जा सकती हैं और हल्की होती हैं। दक्षिण कोरिया के चोननाम नेशनल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेयॉन्ग हियो और डॉक्टर राहुल कुमार यादव की टीम ने एक कमाल की चीज बनाई है। उन्होंने एक ऐसा सोलर सेल बनाया है, जिसकी क्षमता सामान्य सेल से 30% अधिक मानी जा रही है। लेकिन सवाल ये उठता है कि इस इस सेल में ऐसा क्या जोड़ा गया है, जिस कारण इसकी बिजली बनाने की क्षमता में तेजी आ गई है? चलिए जान लेते हैं कि वैज्ञानिकों ने क्या कर दिखाया है?

    किस काम आता है सोलर सेल?

    SciTechDaily की रिपोर्ट (Ref.) बताती है कि सोलर सेल एक छोटी डिवाइस है जो सूरज की रोशनी को सीधे बिजली में बदलती है। इसे Photovoltaic Cell भी कहते हैं। यह साफ और फ्री एनर्जी बनाती है, बिना कोई प्रदूषण किए हुए। आजकल यह हर जगह इस्तेमाल हो रही है क्योंकि बिजली के बिल कम करती है और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता है।

    एक 7 नैनोमीटर की परत ने बदल दी चीजें

    कई सालों की कोशिश के बावजूद सोलर सेल उतनी अच्छी नहीं बनीं जितनी होनी चाहिए थीं। इनमें बिजली का प्रवाह सही नहीं होता था। चार्ज इकट्ठा करने और ले जाने में दिक्कत आती है, जिससे सेल की क्षमता बहुत कम हो जाती है। नई खोज में वैज्ञानिकों ने सोलर सेल की परत और मोलिब्डेनम बैक कॉन्टैक्ट के बीच जर्मेनियम ऑक्साइड (GeOx) की बहुत पतली परत लगाई। यह परत सिर्फ 7 नैनोमीटर मोटी है।

    क्या करती है यह पतली परत?

    प्रोफेसर हियो कहते हैं कि इतनी पतली परत होने के बावजूद यह कई समस्याओं को एक साथ हल कर देती है। यह सोडियम के अनचाहे फैलाव को ब्लॉक करती है और ऊंचे तापमान पर मोलिब्डेनम डाइसल्फाइड बनने से रोकती है। इससे सोलर सेल की परत बेहतर बनती है, चार्ज का ट्रांसपोर्ट और कलेक्शन अच्छा होता है।

    नई सोलर सेल से क्या बदलाव हुआ?

    इस नई तकनीक से सोलर सेल की बिजली बनाने की क्षमता में बहुत बढ़ोतरी हुई है। पुरानी सेल में क्षमता 3.71 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 4.81 प्रतिशत हो गई है। इसकी एफिशिएंसी में करीब 30% का इजाफा होगा। यह इंटरफेस इंजीनियरिंग का तरीका सिर्फ सोलर सेलों तक नहीं रुकेगा। इससे थिन फिल्म ट्रांजिस्टर, थर्मोइलेक्ट्रिक डिवाइस, सेंसर, फोटोडिटेक्टर और मेमोरी डिवाइस जैसी कई तकनीकों में सुधार आएगा। प्रोफेसर हियो का मानना है कि यह काम नई रिसर्च के दरवाजे खोलेगा और अगली पीढ़ी की डिवाइस बनाने में मदद करेगा।

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