भारत यूएई संबंध
कूटनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, भारत के सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात दोनों के साथ मजबूत संबंध हैं। यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। यूएई के साथ भारत की करीबी रणनीतिक साझेदारी है। दोनों देश रक्षा, व्यापार और टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में सहयोगी भी हैं। इनके अलावा, दोनों देश भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEEC) का भी हिस्सा हैं, जो भारत को यूरोप से जोड़ता है। भारत, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका I2U2 फ्रेमवर्क में भी शामिल हैं। भारत ऊर्जा आयात को लेकर भी यूएई के साथ करीबी संबंध बनाए हुए है, भले ही इसकी मात्रा बाकी सप्लायर्स के मुकाबले कम है।
भारत सऊदी अरब संबंध
भारत के सऊदी अरब के साथ भी गहरे रिश्ते हैं। दोनों देश रणनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूती से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा ऊर्जा, निवेश, क्षेत्रीय स्थिरता जैसे मुद्दों पर आपसी सहयोगकर्ता हैं। सऊदी अरब को भारत का सिर्फ तेल सप्लायर के तौर पर नहीं, बल्कि एक लंबे समय के आर्थिक और रणनीतिक साझेदार के तौर पर देखा जाता है। सऊदी अरब भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा और निवेश का एक प्रमुख स्रोत है। भारत भी सऊदी अरब की खाद्य सुरक्षा और कुशल कार्यबल में महत्वपूर्ण योगदान देता है। हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच सैन्य संबंध भी मजबूत हो रहे हैं।
सऊदी अरब-यूएई तनाव से भारत क्यों परेशान
सऊदी अरब और यूएई के साथ मजबूत संबंध भारत को विशेष तौर पर संवेदनशील बनाते हैं। अगर इन दोनों देशों में तनाव बढ़ता है तो इसका असर यमन, लाल सागर और हॉर्न ऑफ अफ्रीका पर भी देखने को मिलेगा, जहां भारत के हित जुड़े हुए हैं। भारत के लिए, बाब-अल-मंडेब और आस-पास के समुद्री रास्ते सिर्फ रणनीतिक स्थान ही नहीं हैं, बल्कि लाइफलाइन है, जहां से ऊर्जा आपूर्ति, व्यापार और सुरक्षा संबंधी नौवहन होता रहता है। भारत 85 प्रतिशत से ज्यादा कच्चा तेल आयात करता है, जिसका बड़ा हिस्सा खाड़ी से होकर आता है। लाल सागर या अरब सागर में कोई भी रुकावट माल ढुलाई की लागत बढ़ा सकती है और ऊर्जा की कीमतों को बढ़ा सकती है।
भारतीय कामगारों पर होगा असर
खाड़ी देशों में लगभग 90 लाख भारतीय रहते और काम करते हैं। इनमें सबसे ज्यादा संख्या संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब में निवास करती है। उनके सुरक्षा और हित दोनों देशों में स्थिरता से जुड़ा है। अगर दोनों देशों में संघर्ष छिड़ता है, तो इसका सीधा असर भारतीय कामगारों पर पड़ेगा। यही कारण है कि भारत की प्राथमिकता दोनों देशों में तनाव कम करने और बातचीत शुरू करने की है। भारत किसी भी सूरत में सऊदी अरब और यूएई के बीच किसी एक का पक्ष नहीं लेगा। हालांकि, सऊदी अरब के साथ पाकिस्तान के रक्षा समझौते से भारत के लिए चिंता जरूर बढ़ गई है। वहीं, चीन भी इन दोनों देशों में लगातार अपना प्रभाव बढ़ा रहा है, जिससे अमेरिका भी परेशान है।













