जुलाई में दोनों ने कर ली शादी, रह रहे साथ
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया तो हमने तथ्यों को देखा और हमें छठी इंद्री (सिक्स्थ सेंस) से यह आभास हुआ कि याची आरोपी और शिकायती लड़की का आपस में विवाह कर लें तो फिर उन्हें साथ लाया जा सकता है। इसी बीच अदालत ने यह नोट किया कि जुलाई में दोनों ने एक दूसरे के साथ शादी कर ली और तब से वह साथ रह रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पांच दिसंबर को दिए फैसले में कहा कि यह रेयर मामलों में एक है कि जहां इस अदालत के दखल के कारण अपीलकर्ता, जिसने अपनी सजा के निलंबन के लिए आवेदन किया था। आखिर में उसकी दोषसिद्धि और सजा दोनों को रद्द किए जाने से राहत पाया और उसे लाभ मिला। सुप्रीम कोर्ट ने उस व्यक्ति की अपील पर यह फैसला सुनाया, जिसमें उसने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के अप्रैल 2024 के उस आदेश को चुनौती दी थी। इसमें उसकी सजा निलंबन की अर्जी खारिज कर दी गई थी। निचली अदालत ने उसे दोषी ठहराते हुए 10 वर्ष के कठोर कारावास और 55,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी।
दोनों एक-दूसरे से करना चाहते थे शादी
सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता और महिला से उनके माता-पिता की उपस्थिति में बातचीत की थी और बताया गया कि वे एक-दूसरे से विवाह करने के इच्छुक हैं। अदालत ने अपीलकर्ता को अंतरिम जमानत दी, जिसके बाद जुलाई में दोनों का विवाह हुआ और उनके माता-पिता इस पूरे एपिसोड से खुश हैं। बेंच ने कहा कि आखिर में हमने भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए इस मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए दोषसिद्धि तथा अपीलकर्ता को दी गई सजा को रद्द करता है। अदालत ने कहा कि हमारा मानना है कि एक गलतफहमी के कारण दोनों पक्षों के बीच सहमति से बना संबंध आपराधिक रंग में बदल गया और उसे विवाह के झूठे वादे से जुड़ा अपराध बना दिया गया, जबकि वास्तव में दोनों एक-दूसरे से विवाह करना चाहते थे।
शादी के झूठे वादे पर कर लिया भरोसा
शीर्ष अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता की महिला से वर्ष 2015 में एक सोशल मीडिया प्लेटफर्म पर मुलाकत हुई और दोनों के बीच आपसी लगाव विकसित हो गया। इसके बाद दोनों सहमति से शारीरिक संबंध में आए। महिला के अनुसार उसने आरोपी द्वारा दिए गए कथित झूठे विवाह-वादे पर भरोसा किया था। महिला ने नवंबर 2021 में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। निचली अदालत द्वारा अप्रैल 2023 में दोषसिद्धि किए जाने के बाद, अपीलकर्ता ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी। उसकी सजा निलंबन की अर्जी उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी, जिसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।














