बिहार विधानसभा का एक किस्सा बेहद चर्चित हुआ था। नीतीश कुमार तब महागठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर रहे थे। किसी मुद्दे पर BJP विधायकों ने उनका विरोध किया, तो नितिन नबीन भी खड़े हो गए। बाकी BJP विधायकों का विरोध तो नीतीश को नहीं खला, लेकिन नितिन को उन्होंने टोक दिया, ‘तुम भी बोलने लगे? तुम्हारे पिता हमारे इतने करीबी रहे, कभी ऐसा कुछ नहीं किया। हम उनकी कितनी मदद किए हैं।’ नितिन तुरंत शांत होकर हट गए।
पार्टी के साथ संयोग: बिहार में नितिन को शांत, सरल और संबंधों के प्रति समर्पित माना जाता है । देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल BJP ने जब उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष चुना, तो सभी हैरान रह गए। यह संयोग है कि पार्टी और नितिन, दोनों का जन्म 1980 में हुआ था। उन्होंने कभी राजनीति को लक्ष्य नहीं बनाया, लेकिन पिता नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा के निधन के बाद हालात ऐसे बने कि वह सियासत में उतर पड़े।
संकेत में संदेश: नितिन नबीन की नियुक्ति को बंगाल चुनाव की तैयारी से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। इससे एक दिन पहले ही पार्टी ने यूपी के प्रदेश अध्यक्ष का फैसला किया था। तब यही कयास थे कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का निर्णय कुछ दिन और टलेगा। नवीन की नियुक्ति में छिपे संदेशों को पढ़ने की कोशिश की जा रही है। एक संकेत तो यह मिलता है कि पार्टी आने वाले समय में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की दिखाई दिशा पर चलेगी।
युवा भागीदारी: इस नियुक्ति का एक और संकेत है कि पार्टी में जेनरेशन नेक्स्ट का समय शुरू हो चुका है। हर स्तर पर युवा भागीदारी बढ़ती दिख रही है। लंबे समय से संघ और संगठन के बीच समन्वय की बातें चल रही थीं। बतौर अध्यक्ष जेपी नड्डा के कार्यकाल को विस्तार मिला था और संघ की तरफ से बार- बार निर्देश मिल रहे थे । इस बीच कई नाम चर्चा में उठे। लेकिन, मोदी और शाह की जोड़ी ने सारे अनुमानों को ध्वस्त करते हुए सवर्ण समाज से ऐसे युवा नेता को चुना है, जो अत्यधिक विनम्रतावश कभी शिखर नेतृत्व का अनादर और उपेक्षा नहीं कर पाएगा।
बिहार की धमक: BJP की परंपरागत शैली पर नजर डालें तो कार्यकारी अध्यक्ष औपचारिक चुनाव के बाद अध्यक्ष पद धारण कर लेता है। लिहाजा पार्टी ने परंपराओं का पालन बखूबी कर लिया । जिस कायस्थ समाज से नितिन आते हैं, उसकी आबादी 2023 में कराई गई जातीय गणना के मुताबिक बिहार में मात्र 0.6% है । इस हिसाब से बिहार में केवल 7.85 लाख कायस्थ हैं। हालांकि जाति के संगठनों का दावा है कि केवल पटना में ही 10 लाख कायस्थ रहते हैं। आंकड़ों की हकीकत कुछ और भी हो सकती है, पर इतना तय है कि विधानसभा चुनाव में मिली जबरदस्त जीत के साथ BJP ने राष्ट्रीय स्तर पर भी बिहार के संदेश की धमक दिखाने में देर नहीं की।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)















