न्यूयॉर्क में सोने के वायदा कारोबार में इस साल लगभग 71% की बढ़ोतरी हुई है। यह पिछले 46 साल में सोने की सबसे बड़ी सालाना बढ़त है। आखिरी बार जब सोने ने इतनी जबरदस्त छलांग लगाई थी, तब अमेरिका में जिमी कार्टर राष्ट्रपति थे, मध्य पूर्व में संकट गहरा रहा था, महंगाई बहुत ज्यादा थी और अमेरिका ऊर्जा संकट से जूझ रहा था। सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक आज के हालात भी कुछ ऐसे ही हैं। व्यापार में टैरिफ की वजह से दिक्कतें आ रही हैं, रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है, ईरान और इज़राइल के बीच तनाव बढ़ा है और अमेरिका वेनेज़ुएला के तेल टैंकरों को जब्त कर रहा है।
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क्यों उछल रहा है सोना?
ऐसे अनिश्चित समय में, निवेशक सोने जैसी सुरक्षित जगहों की ओर भागते हैं। सोने को एक भरोसेमंद निवेश माना जाता है। निवेशक उम्मीद करते हैं कि संकट के समय, महंगाई बढ़ने पर या मुद्राओं के गिरने पर सोना अपना मूल्य बनाए रखेगा। जानकारों का कहना है कि ग्लोबल इकॉनमी में अनिश्चितता बनी हुई है। ऐसे माहौल में सोना एक स्ट्रैटजिक डाइवर्सिफायर और स्थिरता के स्रोत के रूप में ज्यादा आकर्षक हो गया है।
फेडरल रिजर्व जब ब्याज दरें कम करता है, तो बॉन्ड यील्ड कम हो जाती हैं। इससे सोना और भी आकर्षक लगने लगता है। 2026 में फेड की कुछ ब्याज दरें कम होने की उम्मीदें सोने की इस बढ़त को सहारा दे रही हैं। अमेरिकी डॉलर का कमजोर होना भी सोने की कीमतों को बढ़ाने में मदद कर रहा है क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के लिए सोना खरीदना अपेक्षाकृत सस्ता हो जाता है। दुनिया के कई देशों के सेंट्रल बैंक भी भारी मात्रा में सोना खरीद रहे हैं। इसमें चीन सबसे आगे है।
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चीन सबसे आगे
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार, पिछले तीन सालों में दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने हर साल 1,000 टन से ज्यादा सोना जमा किया है, जबकि पिछले दशक में यह औसत 400 से 500 टन प्रति वर्ष था। चीन का केंद्रीय बैंक अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड और डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है। यह बदलाव 2022 में रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से ही दिखाई देने लगा था। पश्चिमी सरकारों ने अमेरिकी डॉलर में रखी रूसी संपत्तियों को फ्रीज कर दिया था। इससे रूस और चीन ने डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने के तरीके खोजना शुरू कर दिया। इससे सोने की डिमांड कई साल तक बने रहने की उम्मीद है।













