कार्बी आंगलोग हिंसा में दो मौत
दिव्यांग सूरज डे उन दो लोगों में शामिल थे, जिनकी मंगलवार की हिंसा में मौत हो गई। उनका शव उनके घर के बगल वाली एक दुकान से बरामद हुआ, जिसे उपद्रवियों ने जला दिया था। पुलिस के मुताबिक शायद नहीं देख पाने की वजह से वह समय पर निकल नहीं सके। पीड़ितों में दूसरे व्यक्ति की पहचान चिंगथी तिमुंग के रूप में हुई, जो स्थानीय कार्बी समुदाय से थे, और उन्हें दो समुदायों के बीच भड़की हिंसा को नियंत्रित करने के दौरान पुलिस की गोली लगी। असम के डीजीपी हरमीत सिंह ने बुधवार को कहा कि इस हिंसा में अबतक वरिष्ठ पुलिस अफसरों समेत 60 से ज्यादा पुलिस वाले जख्मी हुए हैं।
सेना के फ्लैग मार्च से नियंत्रण में स्थिति
असम पुलिस चीफ के अनुसार आर्मी की टुकड़ियों के फ्लैग मार्च के बाद से हालात पूरी तरह से नियंत्रण में हैं। उनके अनुसार उन्होंने खुद भी पूरे उपद्रव ग्रस्त क्षेत्र का दौरा किया। हालांकि तनाव को देखते हुए असम सरकार ने कई स्तर के सुरक्षा इंतजाम किए हैं। कार्बी आंगलोग और वेस्ट कार्बी आंगलोग में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं निलंबित हैं। असम पुलिस और सीआरपीएफ के अतिरिक्त बलों की तैनाती की गई है।
कार्बी आंगलोंग में क्यों भड़की हिंसा?
कार्बी आंगलोंग में मौजूदा हिंसा का तात्कालिक कारण वेस्ट कार्बी आंगलोंग के फेलंगपी में दो सप्ताह से भी अधिक समय से चल रही एक भूख हड़ताल है। ये भूख हड़ताल नौ लोगों ने शुरू की थी, जो कार्बी आंगलोंग ऑटोनोमस काउंसिल ( KAAC) इलाके में प्रोफेशनल ग्रेजिंग रिजर्व (PGR) और विलेज ग्रेजिंग रिजर्व (VGR) यानी चारागाहों के तौर पर चिन्हित जमीनों से ‘अतिक्रमणकारियों’ को हटाने की मांग को लेकर है। कार्बी के आदिवासी लंबे समय से इन जमीनों पर कथित तौर पर अवैध तरह से रहने वालों को हटाने की मांग कर रहे हैं। इन लोगों में ज्यादातर का ताल्लुक बिहार, बंगाल और नेपाल से है, जिनका दावा है कि वे यहां दशकों से रह रहे हैं। पुलिस के मुताबिक सोमवार को अनशन पर बैठे लोगों को स्वास्थ्य कारणों से निकाला गया तो स्थानीय लोगों ने इसे उनकी गिरफ्तारी समझ ली। इसी से गुस्सा भड़क गया हिंसा भड़क उठी।
पीजीआर-वीजीआर की वैधानिक स्थिति
असम का कार्बी आंगलोंग और वेस्ट कार्बी आंगलोंग एक आदिवासी बहुल पहाड़ी जिला है। यह कार्बी आंगलोंग ऑटोनोमस काउंसिल ( KAAC) के अधिकार क्षेत्र में आता है। यह संविधान की छठी अनुसूची के तहत गठित किया गया है। मतलब, इसकी वजह से इन्हें अपनी जमीनों पर स्वायत्तता वाला विशेष अधिकार प्राप्त है। पीजीआर और वीजीआर आमतौर पर अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे जमीन के ऐसे टुकड़े हैं, जिन्हें समय-समय पर मवेशियों के चारागाह के तौर पर चिन्हित किया जाता रहा है। जमीन के इन टुकड़ों का असल मकसद मवेशियों के लिए एक पक्का चारागाह सुनिश्चित करना है, ताकि इनपर निर्भर रहने वाले समुदायों का जीवन यापन चलता रहे।
कार्बी समुदाय और उग्रवाद का इतिहास
असम में कार्बी एक बड़ा आदिवासी समुदाय है। असम में इनके कुछ समूहों का उग्रवाद का एक लंबा इतिहास रहा है। 1980 के दशक के आखिर से तो इनसे हत्याएं, जातीय हिंसा, अपहरण और वसूली जैसे अपराध भी जुड़ गए। इनसे जुड़े संगठनों ने एक अलग राज्य बनाने की बड़ी मांग से शुरुआत की थी। हालांकि, बाद में वे कार्बी आंगलोंग ऑटोनोमस काउंसिल के तहत मिली स्वायत्तता पर ही सहमत हो गए। इनके चारागाहों पर कथित ‘बाहरियों’ का बसना, मौजूदा हिंसा की असल वजह है, जिसको लेकर पहले भी कई प्रदर्शन हो चुके हैं।
गुवाहाटी हाई कोर्ट में लंबित है मामला
2024 के फरवरी में कार्बी संगठनों के कई दिनों के प्रदर्शन के बाद केएएसी के चीफ एग्जिक्यूटिव मेंबर और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के करीबी तुलीराम रोंघंग ने कार्बी आंगलोंग और वेस्ट कार्बी आंगलोंग में चारागाहों से अतिक्रिमण खत्म करने की घोषणा की थी। इन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में कथित ‘गैर-कानूनी’ रूप से रहने वाले परिवारों की संख्या भी बताई थी। तब कार्बी संगठन इस बात को लेकर भड़के हुए थे कि बिहारी नोनिया समुदाय के एक संगठन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक ज्ञापन देकर वेस्ट कार्गी आंगलोंग की इन जमीनों पर बसने वालों को कानूनी मान्यता देने की मांग कर दी थी। इस बार के बवाल में हिंसक प्रदर्शनकारियों ने तुलीराम रोंघंग का पुश्तैनी घर भी जला दिया है। दरअसल, प्रदर्शनकारी इस बात से नाराज हैं कि बाद में उन्होंने कह दिया था कि अतिक्रमण नहीं हटाया जा सकता, क्योंकि इसको लेकर गुवाहाटी हाई कोर्ट में एक पीआईएल दर्ज है।















