यूके के लिवरपूल में कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट और भारत की कोविड-19 सलाहकार कमिटी के पूर्व सदस्य डॉ. मनीष गौतम ने कहा कि पल्यूशन पर सरकार का ध्यान देना जरूरी है, लेकिन यह सच भी स्वीकार करना होगा कि उत्तर भारत में रहने वाले लाखें लोगों के फेफड़ों को नुकसान पहले ही हो चुका है।
जहरीले धुएं का दिल और फेफड़ों पर असर
डॉक्टरों ने यह भी बताया कि गाड़ियों और विमानों से निकलने वाले जहरीले धुएं के कारण लोग लगातार प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं, जिससे दिल और फेफड़ों दोनों पर असर पड़ रहा है।
हाल ही में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में माना कि दिल्ली में करीब 40 फीसदी प्रदूषण परिवहन क्षेत्र से आता है। उन्होंने बायोफ्यूल जैसे साफ विकल्प अपनाने की जरूरत पर जोर दिया। इस समस्या से निपटने के लिए लगातार रिसर्च की जा रही है।
सांस से जुडे 20 से 30 प्रतिशत मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी
वहीं संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार ने कहा कि एयर क्वॉलिटी इंडेक्स और बीमारियों के बीच सीधा संबंध साबित करने वाला पुख्ता डेटा नहीं है, हालांकि यह माना गया कि एयर पल्यूशन सांस की बीमारियों को बढ़ाने वाला एक बड़ा कारण है। दिसंबर में दिल्ली के अस्पतालों में सांस से जुड़ी समस्याओं वाले मरीजों की संख्या में 20 से 30 फीसदी तक बढ़ोतरी दर्ज की गई। इनमें बड़ी संख्या में युवा और पहली बार इलाज कराने वाले मरीज भी शामिल हैं।
वहीं लैसेट की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में भारत में PM2.5 प्रदूषण से 17 लाख से ज्यादा मौतें हुई। विशेषज्ञों का साफ कहना है कि अब साफ हवा को प्राथमिकता देना मजबूरी बन चुका है, वरना आने वाले सालों में यह संकट और गहराएगा।















