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  • विलुप्त होने के कगार पर था यह अनाज, लेकिन अब मिल रहा गेहूं से पांच गुना महंगा, जान लीजिए खूबी

    नई दिल्ली: शहरी इलाकों में लोग लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों से बचने के लिए फंक्शनल फूड यानी सेहतमंद खाने का रुख कर रहे हैं। इससे देश के कई पारंपरिक खाद्यान्नों को नया जीवन मिल रहा है। इनमें खापली गेहूं भी है जो कभी विलुप्त होने की कगार पर था। आज इसकी मांग तेजी से बढ़


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    By Azad Hind Desk दिसम्बर 27, 2025
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    नई दिल्ली: शहरी इलाकों में लोग लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों से बचने के लिए फंक्शनल फूड यानी सेहतमंद खाने का रुख कर रहे हैं। इससे देश के कई पारंपरिक खाद्यान्नों को नया जीवन मिल रहा है। इनमें खापली गेहूं भी है जो कभी विलुप्त होने की कगार पर था। आज इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है और इसकी आटा आम गेहूं के मुकाबले पांच गुना तक महंगा बिक रहा है। पिछले दो साल में आईटीसी, अर्बन प्लेटर, अन्वेशषण, गिरऑर्गेनिक, सात्विक, Conscious Food और आंवला अर्थ जैसी कई छोटी-बड़ी कंपनियों इस खास तरह के गेहूं के आटे को बाजार में उतारा है।

    खापली गेहूं को ‘एमर व्हीट’ भी कहते हैं। इसे सामान्य गेहूं से कहीं ज्यादा फायदेमंद माना जाता है। इसमें फाइबर और प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है। साथ ही, इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है। इसका मतलब है कि यह धीरे-धीरे ग्लूकोज को खून में छोड़ता है। यही वजह है कि यह डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत अच्छा होता है।

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    ग्लाइसेमिक स्केल

    Two Brothers Organic Farms के को-फाउंडर सत्यजीत हंगे ने कहा, “आजकल लोग अपनी सेहत को लेकर बहुत जागरूक हैं। वे बीमारियों से बचने के लिए अच्छे खाने में पैसा लगाना चाहते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें पहले कोई स्वास्थ्य समस्या हुई है और अब वे सेहतमंद खाने की अहमियत समझ गए हैं।” उन्होंने यह भी बताया कि पिछले दो साल में उनके खापली आटे की बिक्री सात से आठ गुना बढ़ गई है।

    इसकी वजह यह है कि लोग अपनी खाने की आदतों में बदलाव ला रहे हैं ताकि डायबिटीज, मोटापा और हार्मोनल समस्याओं जैसी लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों से लड़ सकें। बहुत से लोग ऐसे अनाज खा रहे हैं जिनका ग्लाइसेमिक स्केल कम माना जाता है। जहां आम गेहूं के आटे की बिक्री हर साल 8% से 9% बढ़ रही है और हाई-प्रोटीन आटे की बिक्री 15% से 18% बढ़ रही है।

    बिक्री में तेजी

    वहीं इंडस्ट्री के अनुमानों के मुताबिक खापली आटे की बिक्री कुल कैटेगरी की बिक्री से लगभग पांच गुना तेजी से बढ़ रही है। हालांकि, इसकी कीमत आम आटे से तीन से पांच गुना ज्यादा है। ज्यादा कीमत खापली ही नहीं, बल्कि बाजरा और कुट्टू जैसे दूसरे सेहतमंद अनाज की बिक्री में भी एक बड़ी रुकावट है। सामान्य गेहूं का आटा जहां करीब 50 रुपये प्रति किलो बिकता है, वहीं ITC का खापली आटा की कीमत 159 रुपये प्रति किलो है।

    Two Brothers Organic Farms अपना खापली आटा लगभग 250 रुपये प्रति किलो बेचता है। वहीं कुट्टू का आटा अब कुछ ब्रांड्स 450-500 रुपये प्रति किलो के भाव से बेच रहे हैं। इसे पहाड़ी इलाकों में उगाया जाता है। पिछले दस साल में कुट्टू, चौलाई और जौ जैसे अनाजों की खुदरा कीमतें तीन से चार गुना बढ़ गई हैं।

    कौन खा रहा यह आटा?

    विशेषज्ञों का कहना है कि ये ग्लूटेन-फ्री अनाज का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है। इसका ज्यादातर यूज बड़े शहरों के अमीर करते हैं या फाइव-स्टार होटलों इसका इस्तेमाल होता है। खापली की मांग उन लोगों से भी आ रही है जिन्होंने बाजरा जैसे अनाज आजमाए हैं, लेकिन वे गेहूं को पूरी तरह छोड़ना नहीं चाहते। Basalia Organics की मैनेजिंग डायरेक्टर शर्मिला ओसवाल बताती हैं, “खापली आटा आम आटे से चार से पांच गुना महंगा है। जो लोग डायबिटीज कंट्रोल करने के लिए बाजरा खाना शुरू कर चुके हैं, लेकिन रोटी खाना नहीं छोड़ पा रहे, वे हफ्ते में एक या दो बार खापली गेहूं की रोटी खाने का विकल्प चुनते हैं।”

    उनकी कंपनी कई बड़े FMCG ब्रांड्स को खापली आटे की सप्लाई करती है और उनका अपना बाजरा ब्रांड ‘Gudmom’ भी है। कई बीज कंपनियां भी खापली गेहूं की पैदावार बढ़ाने के तरीके खोज रही हैं, क्योंकि इसकी उपज आजकल के गेहूं से काफी कम होती है। हालांकि वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि इससे ग्लूटेन का स्तर बढ़ सकता है, जिससे इस अनाज की वो खासियतें खत्म हो सकती हैं जो इसे सेहत के प्रति जागरूक खरीदारों के लिए इतना आकर्षक बनाती हैं।

    पुणे के आगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट में खापली गेहूं पर काम करने वाले वैज्ञानिक मनोज ओक कहते हैं, “आम किस्मों जैसे बंसी में एंडोस्पर्म (Endosperm) और चोकर (Bran) का अनुपात 80:15 होता है जबकि खापली में यह 75:20 होता है। लेकिन हमें खापली गेहूं के पोषण संबंधी गुणों को समझने के लिए और ज्यादा रिसर्च की जरूरत है।”

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