सर्वप्रथम लोगो में सूर्य एवं चंद्रमा की कलाओं की उपस्थिति ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य, चंद्रमा एवं नक्षत्रों की स्थितियों को प्रतिबिंबित करता है जो तीर्थराज प्रयागराज में माघ मेले का कारक है। भारतीय ज्योतिष गणना के अनुसार चंद्रमा 27 नक्षत्रों की परिक्रमा लगभग 27.3 दिनों में पूर्ण करता है। महाकुम्भ से लेकर माघ मेला, इन्हीं ग्रह-नक्षत्रीय गतियों के अत्यंत सूक्ष्म गणित पर आधारित है।
चंद्रमा की कलाओं का संबंध मानव जीवन, मनोवैज्ञानिक ऊर्जा और आध्यात्मिक साधना से माना गया है। मकर संक्रांति से सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और त्रिवेणी के पवित्र जल में अपनी ऊर्जा को प्रवाहित करता है। माघ मास के दौरान मकरस्थ सूर्य एवं चन्द्रमा की ऊर्जा, विशेषकर मौनी अमावस्या के दिन दोनों के मिलन से युक्त ऊर्जा स्नान, दान करने वालों का कल्याण करती है। माघ मेले के दौरान त्रिवेणी संगम में स्नान, दान, सूर्य, चंद्र, ग्रहों की ऊर्जा को मानव पिण्ड में सक्रिय कर रोग-शोक का विनाश करता है। कल्पवास के दौरान संगम तट पर रहकर एक माह पर्यन्त साधना का विशेष महत्व रखता है। जैसे शुक्ल पक्ष में अमावस्या से पूर्णिमा की ओर चंद्रमा की वृद्धि होती है, वैसे-वैसा साधक की साधना अपनी पूर्णता की पराकाष्ठा को प्राप्त करती है।
माघ स्नान पर्वों की तिथियाँ चंद्र कलाओं के अत्यंत सूक्ष्म संतुलन पर चुनी जाती हैं। माघ महीने की ऊर्जा शक्ति अनुशासन, भक्ति और गहन आध्यात्मिक कार्यों से जुड़ी है। यह माह पवित्र नदियों में स्नान, दान, तपस्या और कल्पवास जैसे कार्यों के लिए विशेष माना जाता है। इस माह में आध्यात्मिक कार्य व्यक्ति को निरोगी बनाते हैं और उसे दिव्य ऊर्जा से भर देते हैं।
प्रयागराज का अविनाशी अक्षयवट, जिसकी जड़ों में भगवन ब्रह्मा जी का, तने में भगवन विष्णु जी का एवं शाखाओं और जटाओं में भगवन शिव जी का वास है, उसके दर्शन मात्र से मोक्ष का मार्ग सरल एवं सुगम हो जाता है। इसी कारण कल्पवासियों में उसका स्थान अद्वितीय है। संगम पर साइबेरियन पक्षियों की उपस्थिति यहाँ के पर्यावरण की विशेषता को दर्शाता है। लोगो यानि प्रतीक चिन्ह पर श्लोक दिव्य संदेश दे रहा है, ‘माघे निमज्जनं यत्र पापं परिहरेत् ततः’ का अर्थ है कि माघ के महीने में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति हो जाती है।














