इस पर टिपरा स्वदेशी छात्र संघ के अध्यक्ष सजरा देबबर्मा ने कहा-पूर्वोत्तर में जो हो रहा है वह कोई नई बात नहीं है…आज एंजेल चकमा की मृत्यु सिर्फ एंजेल चकमा की मृत्यु नहीं है, यह पूर्वोत्तर के सभी लोगों की मृत्यु है…मैं केंद्र सरकार से सीधे कहना चाहता हूं-यदि आप पूर्वोत्तर के लोगों को सम्मान, गरिमा और प्रेम नहीं दे सकते, तो हमें एक अलग देश दे दीजिए। हम अपना ख्याल खुद रख लेंगे…यह बहुत गंभीर मामला है…मेरे छात्र संघ और पूर्वोत्तर के सभी अन्य छात्र संघों की ओर से, हम सब मिलकर इसका विरोध करते हैं और दोषियों को जल्द से जल्द सजा मिलनी चाहिए, किसी को भी बख्शा नहीं जाना चाहिए। मैं भारत सरकार से यह अनुरोध करता हूं।
ये दो तस्वीरें हैं, जो एंजेल चकमा की मौत पर बहुत कुछ समझने के लिए काफी है। यह सिर्फ पूर्वोत्तर की ही बात नहीं है। कुछ ऐसी ही घटिया सोच दिखाई देती है, जब मुंबई में यूपी के लोगों को हिकारत भरी नजर से देखा जाता है और उन्हें भैया कहा जाता है। दिल्ली में बिहार से आए लोगों को गाली की तरह ‘ऐ बिहारी’ कहकर बुलाया जाता है।
आखिरी वक्त तक कहता रहा-मैं इंडियन हूं, चाइनीज नहीं
प्रधानमंत्री जी, एंजेल चकमा का क्या गुनाह यही था कि उसने छोटे भाई पर नस्लीय टिप्पणी का विरोध किया था। उसे ऐसी घटिया सोच रखने वालों ने चाकुओं से गोद डाला। एंजेल के पिता तरुण चकमा एक देशभक्त हैं और BSF में तैनात है। तरुण चकमा ने बताया कि एंजेल आखिरी वक्त तक यही कहता रहा कि वो इंडियन है। चाइनीज नहीं है। मगर, कुछ बर्बर लोग नहीं माने और उसकी गर्दन और पीठ पर चाकू और कड़े से हमला कर दिया। देहरादून की जिज्ञासा यूनिवर्सिटी, सेलाकुई के छात्र एंजेल ने 17 दिनों तक देहरादून के अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ी। मगर, उसे बचाया नहीं जा सका। इस मामले में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि मामले के दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। मामले में अभी तक पांच आरोपी पकड़े गए हैं। वहीं, एंजेल को चाकू गोदने वाला आरोपी नेपाल का बताया जा रहा है, जो फरार है।
पूर्वोत्तर के लोगों को पीना पड़ता है अपमान का घूंट
एंजेल चकमा की मौत एक बेरहम सोच है, जिसके पीछे बरसों की कुंठा भरी हुई है। पूर्वोत्तर के लोगों को दिल्ली में भी ऐसे अपमान का घूंट अक्सर पीना पड़ता है, जब कोई उन्हें कुटिल मुस्कान के साथ चिंकी या चिंका कह देता है। सोचिए-जब हम विदेश जाते हैं और हमें काला या ब्लडी इंडियन कहा जाता है तो हमें कितनी पीड़ा होती है। पूर्वोत्तर के लोग तो हमारे ही भाई-बंधु हैं। फिर उन्हें ये जिल्लत क्यों झेलनी पड़ती है? ये सवाल पूरे देश से पूछा जाना चाहिए।
पीएम को बदमिजाज लोगों की खबर लेनी चाहिए
खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐसे मामलों में सामने आकर ऐसी सोच का प्रतिकार करना चाहिए और पूरे देश से एक गंभीर अपील करनी चाहिए। उन्हें शायद हम बदमिजाज हो चुके भारतीयों को अपने ही भाई-बांधवों के साथ तमीज से पेश आने और सलीका सीखने की अपील करनी चाहिए।
पूर्वोत्तर कई दशकों से अलगाववाद की आग में झुलसता रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मिशन पूर्वोत्तर के तहत हजारों अलगाववादियों ने आत्मसमर्पण किया। मगर, इस तरह की घटनाएं कहीं फिर से इस मिशन को फेल न कर दें।
प्रधानमंत्री जी, आपको क्लास तो लगानी ही चाहिए
प्रधानमंत्रीजी का भी मिशन पूर्वोत्तर उनके मुख्य एजेंडे में भी रहा। प्रधानमंत्री जी, पूर्वोत्तर तक आपने सड़कें और हाईवे बिछवा दिए। सीमा तक रेल नेटवर्क को फैला दिया। मगर, आपके ये प्रयास अधूरे और असफल हो जाएंगे अगर आपने ऐसी घटनाओं पर लताड़ नहीं लगाई। आपको एक अपील तो पूर्वोत्तर के लोगों के लिए पूरे देश से करनी चाहिए। मन की बात में आपको पूरे देश को यह बताना चाहिए कि वर्ल्ड फेम बॉक्सर एमसी मैरीकॉम, दिग्गज फुटबॉलर वाईचुंग भूटिया, धावक हिमां दास, अभिनेता डैनी डेंजोगप्पा और गंगा से सवाल करने वाले संगीतकार भूपेन हजारिका यहीं से रहे हैं।
सबसे बड़ी बात-माता-पिता ये कैसे राक्षस पैदा कर रहे हैं
प्रधानमंत्री जी, सबसे बड़ी बात यह है कि जिन लोगों ने एंजेल चकमा को मारा, आखिर वो कौन राक्षस हैं। आखिर वो भी तो किसी के बेटे, भाई या पिता होंगे। ऐसी बर्बर सोच के साथ वो लोग किस तरह का समाज बनाएंगे। बच्चों से ज्यादा जरूरी माता-पिता को शिक्षित करना होना चाहिए। क्योंकि वही बच्चों के पहले गुरु होते हैं। उन्हें बहन-बेटियों के साथ सुलूक करने का तरीका, बातचीत करने का सलीका या देश के किसी भी हिस्से चाहे वो दक्षिण भारत हो या पूर्वोत्तर भारत के सभी लोगों को अपना ही भाई-बंधु मानने की सोच सिखानी होगी। ऐसी सोच बेहद शर्मनाक है। ऐसी घटनाएं राष्ट्रीय शर्म हैं।















