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  • CJI की मनमानी से कुछ चुनिंदा लोगों के सैलरी इंक्रीमेंट का फैसला वापस, सुप्रीम कोर्ट के अंदर ये क्या चल रहा था?

    नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में कर्मचारियों के वेतन को लेकर एक बड़ा मामला सामने आया है। आमतौर पर सरकारी या प्राइवेट नौकरी में साल में एक बार वेतन बढ़ता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में ऐसा नहीं था। यहां चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) रिटायरमेंट से ठीक पहले अपनी मर्जी से कुछ चुनिंदा कर्मचारियों को कई-कई


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    By Azad Hind Desk दिसम्बर 15, 2025
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    नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में कर्मचारियों के वेतन को लेकर एक बड़ा मामला सामने आया है। आमतौर पर सरकारी या प्राइवेट नौकरी में साल में एक बार वेतन बढ़ता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में ऐसा नहीं था। यहां चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) रिटायरमेंट से ठीक पहले अपनी मर्जी से कुछ चुनिंदा कर्मचारियों को कई-कई इंक्रीमेंट दे देते थे। जिन CJI का कार्यकाल छोटा था, वे भी अपने खास स्टाफ या अच्छा काम करने वाले कर्मचारियों को सालाना इंक्रीमेंट के अलावा दो-तीन अतिरिक्त इंक्रीमेंट दे देते थे। पिछले चार सालों में सुप्रीम कोर्ट के लगभग 2,000 कर्मचारियों को कम से कम दो से तीन अतिरिक्त इंक्रीमेंट मिले थे। कुछ ऐसे भी थे जो CJI के बहुत करीब थे, उन्हें तो 6-6 अतिरिक्त इंक्रीमेंट मिले। इसका मतलब है कि उनका वेतन सामान्य से डेढ़ गुना (150%) हो गया था।

    इस गड़बड़ी को ठीक करने के लिए, पूर्व CJI बी आर गवाई ने सभी जजों की एक फुल कोर्ट मीटिंग बुलाई। मीटिंग में जजों ने साफ कहा कि सुप्रीम कोर्ट कोई राजशाही नहीं है और CJI कोई राजा नहीं हैं जो अपनी मर्जी से किसी को भी इंक्रीमेंट बांट दें। लंबी चर्चा के बाद, फुल कोर्ट ने इस प्रथा को बंद करने का फैसला किया। साथ ही, पिछले कुछ सालों में दिए गए ये अतिरिक्त इंक्रीमेंट वापस लेने का भी निर्णय लिया गया। अब से, ऐसे इंक्रीमेंट देने का फैसला फुल कोर्ट ही करेगी, ऐसा सूत्रों ने Azad Hind को बताया।

    वेतन कम किया गया

    जिन कर्मचारियों को ये अतिरिक्त इंक्रीमेंट मिले थे, अचानक उनका वेतन काफी कम हो गया। यह उनके लिए बड़ा झटका था क्योंकि उन्होंने बढ़े हुए वेतन के हिसाब से अपने खर्चे तय कर लिए थे, जैसे घर या गाड़ी के लोन लेना। कुछ कर्मचारियों ने तो अतिरिक्त काम करके ये इंक्रीमेंट हासिल किए थे। उनका कहना था कि उनका मासिक वेतन काफी कम हो गया है, कुछ का तो 40,000 रुपये तक। उन्होंने कुछ रजिस्ट्रारों पर गलत जानकारी देकर तत्कालीन CJI को गुमराह करने का आरोप लगाया।

    कर्मचारियों का क्या कहना है?

    हमारे सहयोगी संस्थान Azad Hind ने कई कर्मचारियों से बात की। ज्यादातर का मानना था कि सुप्रीम कोर्ट को इन अतिरिक्त इंक्रीमेंट को भविष्य के सालाना इंक्रीमेंट में एडजस्ट कर देना चाहिए था। इससे कर्मचारियों को अचानक झटका नहीं लगता और उनकी आर्थिक योजनाएं भी प्रभावित नहीं होतीं। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में वेतन वितरण की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठाता है। कर्मचारियों के लिए यह एक अप्रत्याशित और चिंताजनक स्थिति थी, जिसने उनकी वित्तीय योजनाओं को बुरी तरह प्रभावित किया।

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