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  • F-35 News: अमेरिका के लिए सिरदर्द क्यों बना F-35 लड़ाकू विमान, पेंटागन की ऑडिट में चौंकाने वाले खुलासे

    वॉशिंगटन: अमेरिकी वायुसेना के F-35 लड़ाकू विमानों को लेकर पेंटागन की ऑडिट में चौंकाने वाले खुलासे हुए है। इन खुलासों ने F-35 बनाने वाली कंपनी लॉकहीड मार्टिन की नींद उड़ा दी है। इस ऑडिट में पता चला है कि F-35 विश्वसनीयता, लागत और राजनीतिक मिशनों को अंजाम देने में नाकाम रहा है। इस कारण यूरोप


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    By Azad Hind Desk दिसम्बर 27, 2025
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    वॉशिंगटन: अमेरिकी वायुसेना के F-35 लड़ाकू विमानों को लेकर पेंटागन की ऑडिट में चौंकाने वाले खुलासे हुए है। इन खुलासों ने F-35 बनाने वाली कंपनी लॉकहीड मार्टिन की नींद उड़ा दी है। इस ऑडिट में पता चला है कि F-35 विश्वसनीयता, लागत और राजनीतिक मिशनों को अंजाम देने में नाकाम रहा है। इस कारण यूरोप और एशिया के कई देश F-35 की जगह यूरोफाइटर टाइफून, राफेल और ग्रिपेन जैसे विकल्पों की ओर देख रहे हैं। इसके अलावा ये देश खुद के लड़ाकू विमानों को बनाने पर भी जोर दे रहे हैं, जिसका सीधा असर अमेरिकी रक्षा बाजार पर पड़ रहा है।

    ऑडिट रिपोर्ट में क्या कहा गया

    ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि DoD जॉइंट स्ट्राइक फाइटर (JSF) अपनी अत्यधिक तकनीकी जटिलता, एक ही डिजाइन से तीन अत्यधिक विशिष्ट विमान वेरिएंट बनाने के लक्ष्य, महत्वपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला और विनिर्माण मुद्दों, और लगातार सॉफ्टवेयर अपडेट समस्याओं के कारण धीमा रहा है। JSF प्रोग्राम नौ देशों (संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, इटली, नीदरलैंड, तुर्की, ऑस्ट्रेलिया, डेनमार्क, नॉर्वे) के बीच एक संयुक्त प्रयास है, जिनमें से प्रत्येक इस प्रोग्राम से निश्चित संख्या में विमान खरीदने की योजना बना रहा है। हालांकि, जुलाई 2019 में, रूस के S-400 मिसाइल सिस्टम को खरीदने के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने तुर्की को सहयोगियों की सूची से हटा दिया था। तुर्की ने शुरू में इस प्रोग्राम के माध्यम से लगभग 100 JSF खरीदने की योजना बनाई थी।

    F-35 के वेरिएंट ने बढ़ी परेशानी

    ऑडिट में यह भी कहा गया है कि F-35 को समय पर डेवलप करने में मुख्य चुनौती एक ही एयरक्राफ्ट फ्रेम को तीन अलग-अलग सैन्य जरूरतों के लिए डिजाइन करना रहा है। दरअसल, F-35 के तीन वेरिएंट बनाए जाते हैं, जिनमें से पहला- पारंपरिक टेकऑफ यानी F-35A, दूसरा- शॉर्ट टेकऑफ/वर्टिकल लैंडिंग यानी मरीन कॉर्प्स के लिए F-35B और तीसरा- कैरियर बेस्ड ऑपरेशन यानी अमेरिकी नौसेना के लिए F-35C) हैं। हर वेरिएंट को बनाने में न सिर्फ डिजाइन बल्कि तकनीकी रूप से भी कई समझौते करने पड़े हैं। इस कारण इनके निर्माण में कई चुनौतियां पैदा हुई हैं।

    सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट ने बढ़ाई टेंशन

    रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि F-35 का सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट को भी एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है। मौजूदा टेक्नोलॉजी रिफ्रेश 3 (TR-3) को अपग्रेड किया जा रहा है कि ताकि ब्लॉक-4 विमानों का निर्मण किया जा सके। इसमें बहुत ज्यादा समय लग रहा है। इसके अलावा F-35 प्रोग्राम में शामिल कॉन्ट्रैक्टर्स इंजन और एयरक्राफ्ट की डिलीवरी में देरी कर रहे हैं। इनके अलावा मैन्युफैक्चरिंग की समस्याएं और पार्ट्स की कमी का भी सामना करना पड़ रहा है। ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि बड़ी संख्या में F-35 लड़ाकू विमानों को उनके कुछ कंपोनेंट्स के न होने कारण फाइनल ऑपरेशन सर्टिफिकेट (FOC) नहीं मिल पा रहा है।

    F-35 की डिलीवरी में 8 महीने की देरी

    इससे पहले अमेरिकी सरकारी लेखा कार्यालय (GAO) की 3 सितंबर की जारी रिपोर्ट में बताया गया था कि F-35 लड़ाकू विमान का निर्माण करने वाली कंपनी लॉकहीड मार्टिन और इंजन बनाने वाली कंपनी प्रैट एंड व्हिटनी तय समय पर डिलीवरी देने में नाकाम रही हैं। 2023 में इन दोनों कंपनियों से डिलीवर किए गए F-35 लड़ाकू विमान तय समय से औसतन 61 दिनों की देरी से पहुंचे। 2024 में, यह समस्या और ज्यादा बढ़ गई। इस साल डिलीवर किया गया हर F-35 औसतन 238 दिनों की देरी से पहुंचा।

    F-35 की टेक्नोलॉजी रिफ्रेश बनी परेशानी

    रिपोर्ट में देरी का मुख्य कारण टेक्नोलॉजी रिफ्रेश 3 (TR-3) को बताया गया है। यह F-35 के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर अपग्रेड का एक सेट है, जिसकी मदद से अमेरिका अपने 2 बिलियन डॉलर के “ब्लॉक 4 अपग्रेडेशन” को अंजाम दे रहा है। ऐसे में अमेरिकी ऑडिटर्स को आशंका है कि F-35 प्रोग्राम की लागत पहले की तय योजना से लगभग 6 बिलियन डॉलर अधिक होगी। इतना ही नहीं, अब यह प्रोग्राम शुरू में अनुमानित समय से कम से कम पांच साल बाद पूरा होगा। GAO की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी रक्षा विभाग ने समय पर डिलीवरी में सुधार के लिए कॉन्ट्रैक्टरों को लाखों डॉलर की प्रोत्साहन फीस भी दी है।

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