कौन हैं जस्टिस रेवती पी मोहिते डेरे
वेबसाइट बार एंड बेंच के अनुसार, जस्टिस डेरे का जन्म 17 अप्रैल, 1965 को पुणे में हुआ था और उन्होंने पुणे के सिम्बायोसिस लॉ कॉलेज से एलएलबी की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में वकालत की और महाराष्ट्र सरकार के लिए अभियोजक के रूप में भी कार्य किया, जिसके बाद 2013 में उन्हें अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। बाद में 2015 में वो बॉम्बे हाई कोर्ट की स्थायी न्यायाधीश बनीं और तब से बिना किसी तबादले के सेवा दे रही हैं।
कई बड़े फैसलों को लिखने में अहम भूमिका
जस्टिस रेवती पी मोहिते डेरे ने भारत में आपराधिक प्रक्रिया और पुलिस जांच से संबंधित कई महत्वपूर्ण फैसले लिखे हैं, जिनमें आपराधिक मुकदमों पर रिपोर्टिंग करने की प्रेस की स्वतंत्रता, बार-बार किए गए अपराधों के लिए मृत्युदंड, झूठी और अनुचित जांच के लिए पुलिस की जवाबदेही से संबंधित मामले शामिल हैं।
हिरासत में हुई मौतों के मामले में पुलिस पर सख्ती
2015 में जस्टिस डेरे एक और न्यायाधीश वीएम कनाडे ने महाराष्ट्र सरकार को हिरासत में हुई मौतों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने और ऐसी किसी भी मौत के लिए जिम्मेदार पुलिसकर्मियों की जांच और उन्हें निलंबित करने का आदेश दिया।
हाजी अली दरगाह का वो ऐतिहासिक फैसला
2016 में जस्टिस डेरे एक ऐसी पीठ का हिस्सा थीं जिसने मुंबई की एक मस्जिद हाजी अली दरगाह के भीतरी गर्भगृह में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी यह कहते हुए हटा दी थी कि यह प्रतिबंध असंवैधानिक था और मस्जिद के प्रबंध न्यास को महिलाओं को प्रवेश करने और इबादत करने की अनुमति देने का निर्देश दिया।
गरीबों के इलाज के बिल पर दिया बड़ा फैसला
जस्टिस डेरे और जस्टिस वीएम कनाडे ने 2016 में एक अलग मामले में यह भी सिफारिश की कि निगमों को अपने अनिवार्य कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी आवंटन का उपयोग गरीब व्यक्तियों के अस्पताल बिलों का भुगतान करने में मदद के लिए करना चाहिए।
जेलों में मांओं के साथ हिरासत में रखे बच्चों की जांच
2017 में जस्टिस डेरे और एक अन्य न्यायाधीश, मृदुला भाटकर ने महाराष्ट्र की जेलों में अपनी माताओं के साथ हिरासत में रखे गए बच्चों की स्थितियों की न्यायिक जांच का नेतृत्व किया।
14 वर्षीय रेप पीड़िता को गर्भपात की इजाजत
2019 में जस्टिस डेरे और एक अन्य न्यायाधीश ने 14 वर्षीय रेप पीड़िता को गर्भपात करने की अनुमति दी, जिससे चिकित्सा गर्भपात अधिनियम के तहत 20 सप्ताह से ज्यादा के भ्रूण को हटाने पर पाबंदी का नियम अपवाद बन गया था।
सोहराबुद्दीन केस की सुनवाई की थी
2018 में ही जस्टिस डेरे को बहुचर्चित सोहराबुद्दीन केस की रोजाना सुनवाई करते हुए तीन हफ्ते ही बीते थे कि उन्हें नई जिम्मेदारी दे दी गई। 23 फरवरी को बॉम्बे हाई कोर्ट की वेबसाइट पर ये जानकारी दी गई कि जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे अब आपराधिक मामलों की पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करेंगी। 21 फरवरी को उन्होंने इस मामले में कहा था कि सीबीआई इस मामले में ‘पर्याप्त रूप से सहयोग करने में नाकाम’ रही है।















