पाकिस्तान में फर्स्ट कजिन मैरिज
स्टडी से पता चलता है कि पाकिस्तान में लगभग 60 से 70 प्रतिशत शादियां परिवार के अंदर होती हैं। इनमें ज्यादातर फर्स्ट कजिन के बीच (चचेरे, फुफेरे भाई-बहन) होती है, जो वैश्विस औसत 10% से बहुत अधिक है। पाकिस्तान में कई परिवारों में यह प्रथा पीढ़ियों से चली आ रही है। हालांकि, स्वास्थ्य विशेषज्ञ लंबे समय से कजिन शादियों को लेकर चिंता जता रहे हैं।
कजिन मैरिज से शादी के खतरे
विशेषज्ञों का कहना है कि फर्स्ट कजिन से पैदा होने वाले बच्चों में आम आबादी की तुलना में जन्म दोष का खतरा लगभग दोगुना होता है। जब ऐसी शादियां पीढ़ियों तक चलती हैं तो वंशानुगत आनुवंशिक विकार (जेनेटिक डिसऑर्डर) ज्यादा बढ़ जाते हैं। पाकिस्तान में पहले से ही थैलेसीमिया, सिस्टिक फाइब्रोसिस और बौद्धिक अक्षमता जैसी बीमारियों से प्रभावित लोगों की संख्या काफी ज्यादा है। ये उन क्षेत्रों में अधिक है, जहां दशकों से परिवार में शादियों का प्रचलन है।
थैलेसीमिया और जेनेटिक डिसऑर्डर
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तान में होने वाली शिशु मृत्यु दर का लगभग 30 से 40 प्रतिशत करीबी रिश्तों के बीच होने वाली शादियों से संबंधित है। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में थैलेसीमिया लगभग हर 10000 पैदा होने वाले बच्चों में से एक को प्रभावित करता है। इनमें से कई बच्चे जिंदगी भर ब्लड ट्रांसफ्यूजन पर निर्भर रहते हैं।
हालिया अध्ययनों ने इन चिंताओं को और बढ़ाया है। खैबर पख्तूनख्वा के 2023 के एक अध्ययन में पाया गया कि कजिन शादियों से पैदा होने वाले बच्चों में क्रोमोसोम डिसऑर्डर का खतरा 2.5 गुना अधिक है। जेनेटिक एक्सपर्ट का कहना है कि एक ही परिवार में बार-बार शादी करने से आनुवंशिक विविधता कम हो जाती है। इससे समय के साथ स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ने लगती हैं।
मुस्लिम देश उठा रहे कदम
कजिन शादियों से जुड़े स्वास्थ्य खतरों को देखते हुए कई मुस्लिम देशों ने कदम उठाए हैं। ईरान ने थेलेसीमिया के लिए शादी से पहले अनिवार्य स्क्रीनिंग शुरू की। इसमें मामलों में 70 फीसदी की कमी देखी गई। सऊदी अरब ने शादी के पहले जेनेटिक काउंसलिंग को जरूरी कर दिया है। पाकिस्तान ने छोटे-मोटे प्रयास किए हैं, लेकिन ये कोशिशें सीमित हैं।














