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  • चीन के डेंग शाओपिंग की तरह काम कर रहे हैं नरेंद्र मोदी, किसने कही यह बात?

    नई दिल्ली: भारत की अर्थव्यवस्था इस समय तेजी से बढ़ रही है। दुनियाभर की आर्थिक संस्थाओं की नजर भारतीय अर्थव्यवस्था पर टिकी है। माना जा रहा है कि भारत जल्द ही 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा। वहीं अमेरिकी अरबपति, कारोबारी और ब्रिजवाटर एसोसिएट्स के फाउंडर रेमंड थॉमस डेलियो (Raymond Thomas Dalio)


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    By Azad Hind Desk दिसम्बर 23, 2025
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    नई दिल्ली: भारत की अर्थव्यवस्था इस समय तेजी से बढ़ रही है। दुनियाभर की आर्थिक संस्थाओं की नजर भारतीय अर्थव्यवस्था पर टिकी है। माना जा रहा है कि भारत जल्द ही 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा। वहीं अमेरिकी अरबपति, कारोबारी और ब्रिजवाटर एसोसिएट्स के फाउंडर रेमंड थॉमस डेलियो (Raymond Thomas Dalio) ने भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की है। रेमंड थॉमस डेलियो को रे डेलियो के नाम से भी जाना जाता है।

    भारतीय कारोबार निखिल कामथ के साथ एक बातचीत में रे डेलियो ने कहा कि भारत अपनी चुनौतियों के बावजूद अगले दशक में सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने की राह पर है। उन्होंने पीएम मोदी की तुलना चीन के नेता डेंग शाओपिंग ( Deng Xiaoping ) से की। शाओपिंग चीन को बाजारवादी अर्थव्यवस्था की ओर ले गए थे। उन्हें आधुनिक चीन के आर्थिक सुधारों का जनक भी माना जाता है।
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    तुलना में क्या कहा?

    डेलियो ने कहा कि मोदी की तुलना शाओपिंग से करने का मतलब विचारधारा से नहीं, बल्कि संरचनात्मक बदलावों को लागू करने की क्षमता से था। उन्होंने कहा कि सड़कों, लॉजिस्टिक्स, डिजिटल सिस्टम और वित्तीय व्यवस्था में लगातार निवेश से लंबे समय तक चलने वाला विकास होता है, न कि सिर्फ थोड़े समय के लिए। डेलियो ने कहा कि ऐसे सुधार भारत को एक ऐसे बहु-दशक के विस्तार चक्र के शुरुआती चरण में रखते हैं, जैसा कि चीन लगभग 30 साल पहले था।

    लेकिन यहां दी चेतावनी

    इस दौरान डेलियो ने भारत को एक चेतावनी भी दी। उन्होंने कहा कि मजबूत आर्थिक गति अपने आप वैश्विक प्रभुत्व में नहीं बदल जाती। उन्होंने कहा कि तेजी से विकास और सुधरते बुनियादी सिद्धांतों के बावजूद भारत की वैश्विक शक्ति अभी भी अमेरिका और चीन से पीछे है। यह आर्थिक विकास और भू-राजनीतिक प्रभाव के बीच के अंतर को दर्शाता है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस अंतर को पाटने के लिए सिर्फ विकास दर ही काफी नहीं होगी, बल्कि भारत को सुधारों और घरेलू ताकत को लगातार रणनीतिक क्षमता में बदलने की जरूरत होगी।

    नियम नहीं, पावर जरूरी

    डेलियो के अनुसार 1945 के बाद की वैश्विक व्यवस्था अब प्रभावी रूप से खत्म हो गई है। वह अर्थव्यवस्था संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं पर बनी थी। इसकी जगह एक ऐसी व्यवस्था आ गई है जहां नियमों के बजाय शक्ति यानी पावर ही नतीजों को तय करती है।

    डेलियो ने कहा, ‘अब हमारे पास उस तरह की विश्व व्यवस्था नहीं है।’ उन्होंने बढ़ती भू-राजनीतिक बिखराव और प्रमुख शक्तियों के बीच घटते भरोसे की ओर इशारा किया। उन्होंने तर्क दिया कि देश अब सिर्फ युद्ध के मैदानों पर ही नहीं, बल्कि व्यापार, पूंजी प्रवाह, प्रौद्योगिकी और प्रभाव के क्षेत्रों में भी टकराव की तैयारी कर रहे हैं।

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