तीसरी पिन क्या है?
प्लग में जो तीन पिन होती हैं। उनमें दो पिन बिजली के लिए होती हैं, एक लाइव और एक न्यूट्रल। तीसरी पिन को अर्थ या ग्राउंड पिन कहते हैं। यह पिन बिजली के लीक होने पर उसे जमीन में भेज देती है। यह पिन आमतौर पर लंबी और मोटी होती है ताकि प्लग लगाते समय सबसे पहले यह कनेक्ट हो। इससे अगर कोई समस्या हो तो बिजली सीधे जमीन में चली जाती है और हमें झटका नहीं लगता।
तीसरी पिन क्यों जरूरी है?
तीसरी पिन का काम सुरक्षा देना है। अगर कोई किसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में शॉर्ट सर्किट हो जाए या बिजली लीक हो रही हो, तो यह पिन उस बिजली को सुरक्षित रास्ते से जमीन में पहुंचा देती है। इससे इंसान को झटका लगने का खतरा कम हो जाता है। खासकर मेटल से बने उपकरणों में यह बहुत काम आती है, जैसे फ्रिज या वॉशिंग मशीन। बिना इस पिन के, बिजली शरीर से होकर गुजर सकती है, जो जानलेवा हो सकता है।
तीसरी पिन न होने के नुकसान
अगर प्लग में तीसरी पिन न हो तो खतरा बढ़ जाता है। बिजली लीक होने पर वह उपकरण की बॉडी में आ सकती है और छूने पर झटका लग सकता है। यह झटका हल्का नहीं बल्कि जानलेवा हो सकता है। पुराने घरों में जहां दो पिन वाले सॉकेट हैं, वहां आग लगने या उपकरण खराब होने की शिकायतें ज्यादा आती हैं। बिना ग्राउंडिंग के, बिजली का बहाव सही नहीं होता जिससे सामान जल्दी खराब हो जाता है।
कुछ प्लग दो पिन वाले क्यों होते हैं?
कुछ प्लग में सिर्फ दो पिन होती हैं क्योंकि वे ऐसे उपकरणों के लिए बने होते हैं जिनमें डबल इंसुलेशन होती है। ये उपकरण ‘क्लास II’ कहलाते हैं, जैसे मोबाइल चार्जर या छोटे लैंप। इनमें एक्स्ट्रा सुरक्षा की परत होती है जिससे बिजली लीक होने का खतरा कम होता है। इसलिए इन्हें ग्राउंड पिन की जरूरत नहीं पड़ती। पुराने समय में या कम पावर वाले सामान में दो पिन वाले प्लग आम थे। लेकिन अब ज्यादातर नए उपकरण तीन पिन वाले आते हैं ताकि सुरक्षा ज्यादा हो।














