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  • नेपाल चुनाव 2026: भारत विरोधी काठमांडू मेयर बालेन शाह PM उम्मीदवार घोषित, RSP के साथ बड़ा सियासी गठबंधन

    काठमांडू: नेपाल की राजनीति में बहुत बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। काठमांडू महानगर के मेयर बालेन्द्र शाह (बालेन शाह) को औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया है। यह घोषणा उस समय हुई, जब बालेन शाह ने राष्ट्रीय स्वतन्त्र पार्टी (RSP) के साथ आधिकारिक तौर पर गठबंधन में जाने की घोषणा


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    By Azad Hind Desk दिसम्बर 28, 2025
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    काठमांडू: नेपाल की राजनीति में बहुत बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। काठमांडू महानगर के मेयर बालेन्द्र शाह (बालेन शाह) को औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया है। यह घोषणा उस समय हुई, जब बालेन शाह ने राष्ट्रीय स्वतन्त्र पार्टी (RSP) के साथ आधिकारिक तौर पर गठबंधन में जाने की घोषणा की है। नेपाल में 5 मार्च 2026 को संसदीय चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले अलग अलग राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं। बालेन शाह ने चुनाव पूर्व गठबंधन के लिए समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। सात बिंदुओं वाले इस समझौते के तहत 35 साल के बालेन शाह को गठबंधन का संसदीय दल नेता और प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाया गया है। वहीं RSP के प्रमुख रवि लामिछाने, पार्टी के अध्यक्ष बने रहेंगे।

    शनिवार को इस गठबंधन को फाइनल करने के लिए देर रात तक बैठक चलती रही और रविवार सुबह गठबंधन की घोषणा की गई है। दोनों पार्टियों में हुए समझौते के मुताबिक, बालेन और उनके समर्थक RSP के चुनाव चिह्न ‘घंटी’ पर चुनाव लड़ेंगे। बालेन ने अपनी राजनीतिक टीम को RSP में विलय करने पर सहमति दे दी है, हालांकि पार्टी का नाम, झंडा और चुनाव चिह्न पहले जैसे ही रहेंगे। दोनों पक्षों ने कहा कि उन्होंने “भ्रष्टाचार और खराब शासन के खिलाफ युवा पीढ़ी की तरफ से किए गए आंदोलन की जिम्मेदारी ली है और विरोध प्रदर्शनों के दौरान उठाई गई मांगों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिसमें सुरक्षा बलों के साथ झड़पों में घायल हुए लोगों को समर्थन देना भी शामिल है।”

    बालेन शाह बने नेपाल में प्रधानमंत्री उम्मीदवार
    आपको बता दें कि नेपाल में इस साल सितंबर में युवाओं के नेतृत्व में हिंसक आदोलन शुरू हुआ था, जिसमें केपी शर्मा ओली की सरकार का पतन हो गया था। सितंबर के आंदोलन में छात्र, युवा वर्ग और युवा प्रोफेशनल्स शामिल थे। आंदोलनकारियों में ज्यादातर पहली बार वोट करने वाले मतदाता भी शामिल थे।

    बालेन शाह–RSP समझौते की प्रमुख बातें क्या हैं?

    • बालेन शाह RSP गठबंधन के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार
    • संसदीय दल के नेता के रूप में बालेन की ताजपोशी
    • चुनाव RSP के ‘घंटी’ चुनाव चिन्ह पर लड़ा जाएगा
    • बालेन की टीम का RSP में औपचारिक विलय हुआ
    • पार्टी का नाम, झंडा और चिन्ह पहले जैसे ही रहेंगे

    इस समझौते को सितंबर 2025 में हुए Gen Z आंदोलन का राजनीतिक विस्तार बताया जा रहा है। दोनों पक्षों ने घोषणा की कि वे युवाओं की तरफ से भ्रष्टाचार, खराब शासन और बेरोजगारी के खिलाफ शुरू किए गए आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाएंगे। सितंबर में हुआ आंदोलन इतना हिंसक था कि कम से कम 70 लोग मारे गये थे। केपी शर्मा ओली की सरकार गिर गई थी और कई नेता भी गंभीर रूप से घायल हुए थे।

    मार्च चुनाव में नेपाल में पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी?
    नेपाल में राजशाही के पतन के बाद जबसे चुनाव शुरू हुए हैं, एक बार भी किसी भी पार्टी पूर्ण बहुमत से सरकार नहीं बना पाई है। इसीलिए एक भी बार सरकार ने पांच सालों का कार्यकाल पूरा नहीं किया है। हालांकि इस नये गठबंधन के बाद RSP के प्रमुख रवि लामिछाने ने कहा, कि यह गठबंधन किसी एक नेता की महत्वाकांक्षा नहीं, बल्कि देश की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि “यह साझेदारी राजनीतिक सुधार और पारदर्शी शासन के साझा संकल्प पर आधारित है।” राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस गठबंधन से बड़ी संख्या में Gen Z समर्थक RSP से जुड़ सकते हैं, जिससे पार्टी की जमीनी ताकत और मजबूत हो सकती है।

    आपको बता दें कि RSP पहले ही भंग हो चुकी प्रतिनिधि सभा में चौथी सबसे बड़ी पार्टी थी। अब बालेन शाह जैसे लोकप्रिय और गैर-पारंपरिक नेता के जुड़ने से पार्टी को शहरी युवाओं और पहली बार वोट करने वालों का बड़ा समर्थन मिलने की उम्मीद है। इस बीच, ऊर्जा और जल संसाधन मंत्री कुलमान घिसिंग की अगुवाई वाली उज्यालो नेपाल पार्टी (UNP) ने अभी गठबंधन में शामिल होने पर फैसला नहीं किया है, हालांकि बातचीत जारी है।

    भारत को लेकर क्या रहा है बालेन शाह का रूख?
    बालेन शाह भारत की कई बार आलोचना कर चुके हैं। उनके बयान से कई बार ऐसा महसूस हुआ कि वो नेपाल की भारत से निर्भरता की कोशिश करने का समर्थन करते हैं। उन्होंने कई बार भारत के साथ सीमा विवाद, जैसे कालापानी-लिपुलेख को लेकर सख्त बयानबाजी की है। उन्होंने अपने बयानों में नेपाल की राजनीति में भारत के हस्तक्षेप का भी आरोप लगाया है। हालांकि राहत की बात ये है कि उन्होंने चीन के समर्थन में भी अभी तक बयानबाजी नहीं की है। उनके अभी तक चीन समर्थक होने के भी संकेत नहीं मिले हैं।

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