तस्वीर में आप देख सकते हैं कि जनरल नियाजी के सामने भारत के विजयी लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा बैठे हैं, जिनके दोनों तरफ बांग्लादेश के मुक्ति वाहिनी कमांडर हैं। नियाजी के पीछे, 90,000 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक अपने अंजाम का इंतजार कर रहे हैं। ये दूसरे विश्व युद्ध के बाद का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था। इस दौरान आसमान में भारतीय तिरंगा लहरा रहा था और जमीन पर पाकिस्तानी सेना का घमंड आत्मसमर्पण की रेत में दफन हो रहा था।
शराब, सेक्स और भ्रष्टाचार में डूबी पाकिस्तानी सेना
जांच रिपोर्ट से पता चलता है कि जब जनरल नियाजी आत्मसमर्पण कर रहे थे उस वक्त पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल याह्या खान हैंगओवर से जूझ रहे थे। “जनरल रानी” नाम की महिला कुछ घंटे पहले ही उनके घर से निकली थी। गवाहों ने बाद में बताया कि पिछली रात की शराब पार्टी बहुत देर तक चली थी। यानि, पाकिस्तान बंट रहा था, आधा देश हाथ से निकल रहा था, 93 हजार सैनिक सरेंडर करने वाले थे और पाकिस्तानी सेना के टॉप अधिकारी शराब और औरतों के बीच अय्याशी कर रहे थे। इसके बाद पाकिस्तान के नए नेता, जुल्फिकार अली भुट्टो ने चीफ जस्टिस हमूदुर रहमान को एक जांच आयोग का प्रमुख बनाया। इसका मकसद हार की वजह तलाशना था। इसके बाद रहमान ने जो खुलासा किया, उसने पाकिस्तान की सेना को बदनाम कर दिया।
हमूदुर रहमान आयोग (HRC) ने 1972 में जांच शुरू की और 1974 में अपनी मुख्य रिपोर्ट सौंपी। इस जांच रिपोर्ट में कहा गया था कि पाकिस्तान सिर्फ मिलिट्री की नाकामी की वजह से युद्ध नहीं हारा। बल्कि वह इसलिए हारा क्योंकि उसके जनरल अय्याशी, भ्रष्टाचार और बदचलनी में इतने डूब गए थे कि वे अब सैनिक कहलाने लायक भी नहीं रहे। आयोग ने साफ-साफ कहा कि “आयोग के सामने लाए गए सबूतों का विश्लेषण करने के बाद, हम इस नतीजे पर पहुंचे कि सेना के सीनियर रैंक के लोगों का नैतिक पतन हो चुका है। बड़ी संख्या में सीनियर आर्मी अधिकारियों ने न सिर्फ बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया था, बल्कि उनमें से ज्यादातर अय्याशी में डूबे रहते थे।
याह्या खान… शराब और ‘जनरल रानी’
जांच आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि जनरल आगा मुहम्मद याह्या खान, जिसने 1969 के तख्तापलट में देश सत्ता पर कब्जा कर लिया, वो खुद को पाकिस्तान का मालिक समझ रहा था। उन्होंने पाकिस्तान को नाच-गाने और पार्टियों में डुबो दिया। 1971 तक, जब बांग्लादेश संघर्ष परवान पर चढ़ रहा था और पाकिस्तान, गृहयुद्ध में फंस चुका था, उस वक्त तक याह्या खान का रावलपिंडी वाला घर बदनाम हो चुका था। हालांकि कमीशन की रिपोर्ट इस अय्याशी में शामिल सभी लोगों का नाम लेने में सावधानी बरती गई थी, लेकिन यह साफ कर दिया कि याह्या और उनके करीबी लोगों ने सत्ता के सबसे ऊंचे पद पर लगातार नशे और निजी अनैतिकता का माहौल बना दिया था।
जांच रिपोर्ट में जिस जनरल रानी का जिक्र किया गया, उसका असली ना अकलीम अख्तर था। वो पाकिस्तान के इतिहास की सबसे विवादास्पद शख्सियतों में गिनी जाती हैं। 1971 के युद्ध से पहले के दौर में वह सैन्य तानाशाह जनरल याह्या खान की करीबी सहयोगी और कथित रखैल के रूप में जानी जाती थीं। कहा जाता है कि वो पाकिस्तान की सेना से लेकर सरकार को पूरी तरह से कंट्रोल करती थी। सरकारी अधिकारी उनसे ही पूछकर फैसले किया करते थे। कहा जाता है कि तबादले, प्रमोशन, ठेके और राजनीतिक फैसलों जनरल रानी ही लिया करती थी।
रिपोर्ट में कहा गया कि जनरल नियाजी की छवि इतनी खराब थी कि सैनिक खुलेआम कहते थे, “जब जनरल खुद बलात्कारी हो, तो सिपाहियों को कैसे रोका जाए?” यह बयान बताता है कि नेतृत्व की गिरावट कैसे पूरे सैन्य अनुशासन को तबाह कर देती है। जब भारतीय सेना ने निर्णायक हमला किया, तो जनरल नियाजी में ना तो लड़ने की इच्छाशक्ति बची थी और ना ही सैनिकों में अपने जनरल को लेकर भरासा बचा था। आयोग ने सिफारिश की थी कि याह्या खान और नियाजी समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों पर सार्वजनिक मुकदमा चलाया जाए, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ।














