यूरेशियन टाइम्स में भारत के लेफ्टिनेंट जनरल अभय कृष्ण (रिटायर्ड) ने लिखा है कि आधुनिक युद्ध का मैदान अब सिर्फ राफेल, S-400 सरफेस टू एयर मिसाइल या F-35 जैसे महंगे प्लेटफॉर्म का ही दबदबा नहीं रहा। इसके बजाय अब स्मार्ट प्लेटफॉर्म युद्ध को तेजी से बदल सकते हैं। जैसे यूक्रेन ने ड्रोन स्वार्म से रूस के करीब एक दर्जन बॉम्बर और फाइटर जेट को उड़ाकर पूरी दुनिया को चौंका दिया था। उन्होंने लिखा है कि छोटे ड्रोन, लोइटरिंग म्यूनिशन, ऑटोनॉमस ग्राउंड व्हीकल और रोबोटिक सिस्टम ने युद्ध को लागत के हिसाब को नाटकीय रूप से बदल दिया है। अब कुछ हजार डॉलर के हथियार लाखों डॉलर के महंगे प्लेटफॉर्म को तबाह करने की क्षमता रखते हैं। इसीलिए भारत के लिए युद्ध के इस बदलते मॉडल के मुताबिक ढलना जरूरी है।
सस्ते हथियार कैसे बदल रहे युद्ध का मैदान
छोटे ड्रोन, लोइटरिंग म्यूनिशन, ऑटोनॉमस ग्राउंड व्हीकल और रोबोटिक सिस्टम ने युद्ध की लागत के हिसाब को नाटकीय रूप से बदल दिया है। अब कुछ हज़ार डॉलर की चीजें लाखों डॉलर की संपत्ति को खतरा पहुंचा सकती हैं। लागत और असर का यह उल्टा होना युद्ध को इस तरह से बदल रहा है जिसके भारत की सुरक्षा के लिए गहरे मायने हैं। लेफ्टिनेंट जनरल अभय कृष्ण (रिटायर्ड) ने लिखा है कि यूक्रेन, गाजा युद्ध, रेड सी और नागोर्नो-कराबाख जैसे संघर्ष क्षेत्रों से साफ है कि युद्ध में महंगे हथियारो की तुलना में सस्ते हथियारों का प्रभाव काफी बढ़ चुका है।
उन्होंने लिखा है कि पिछले दशक में लड़ाकू विमान, टैंक, युद्धपोत और मिसाइल डिफेंस सिस्टम युद्ध के मैदान में बाजी पलट देते थे। हालांकि ये आज भी जरूरी हैं, लेकिन निर्णायक नहीं हैं। यूक्रेन के क्वाडकॉप्टर ड्रोन ने रूस के भारी टैंकों को तबाह किया। ब्लैक सी में नौसैनिक ड्रोन ने एक रूस की शक्तिशाली नौसेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। हूती विद्रोहियों ने बेहद कम लागत वाले ड्रोन और रॉकेट से एयरबेस और शिपिंग रूट्स को निशाना बनाया। अब हालात यह हैं कि पांच-दस हजार रुपये के ड्रोन को गिराने के लिए करोड़ों की मिसाइल दागना रणनीतिक रूप से टिकाऊ फायदे का सौदा नहीं है। इसीलिए सस्ते ड्रोन पर फोकस करना जरूरी है।
भारत के सामने चीन-पाकिस्तान खतरा
उन्होंने लिखा है कि चीन ने इस बदलाव को सबसे तेजी से समझा है। चीन ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स और ऑटोनॉमस वॉरफेयर में भारी निवेश किया है। चीनी रक्षा उद्योग अब न सिर्फ PLA के लिए, बल्कि निर्यात के लिए भी बड़ी संख्या में ड्रोन, लॉइटरिंग म्यूनिशन और ऑटोनॉमस सिस्टम बना रहा है। पाकिस्तान को इससे सबसे ज्यादा फायदा है। पहले ड्रोन और निगरानी सिस्टम, अब ग्राउंड रोबोट, ऑटोनॉमस सेंट्री और AI-आधारित बैटल मैनेजमेंट सिस्टम, ये सब भारत के लिए गंभीर चुनौती हैं। चीन-पाकिस्तान की यह टेक्नोलॉजिकल और डॉक्ट्रिनल साझेदारी LoC पर खतरे पैदा करती है।
इसीलिए भारत को अब प्लेटफॉर्म आधारित सोच से निकलकर आधुनिक युद्ध क्षमता की तरफ बढ़ना होगा। इसका मतलब ज्यादा सैनिक नहीं, बल्कि ज्यादा सेंसर, ज्यादा ड्रोन और ज्यादा युद्ध के माहौल बदलने वाले हथियार चाहिए। हर इन्फैंट्री यूनिट के पास ड्रोन स्वार्म, पॉकेट जैमर और काउंटर-ड्रोन सिस्टम होने। सस्ते खतरों से निपटने के लिए लेयर्ड डिफेंस सिस्टम, जैसे जैमर, सॉफ्ट-किल सिस्टम और डायरेक्टेड एनर्जी वेपन्स जरूरी हैं। इजरायल का आयरन बीम लेजर सिस्टम, ईरान के शाहेद ड्रोन काफी असरदार साबित हुए हैं और भारत को भी ऐसे हथियारों की तरफ फोकस करना चाहिए।













