एक दशक में छह पनडुब्बियों की डिलीवरी
डिफेंस कैपिटल के साथ एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में, रहमान ने कहा कि अगर लंबे समय से पेंडिंग P75(I) कॉन्ट्रैक्ट उम्मीद के मुताबिक फाइनल हो जाता है और टेक्निकल ज़रूरतें जल्दी तय हो जाती हैं, तो इस टाइमलाइन पर पनडुब्बियों की डिलीवरी की जा सकती है। उन्होंने कहा कि बाकी पनडुब्बियों की लगातार तय समय पर डिलीवरी की जाएगी। ये पनडुब्बियां भारतीय नौसेना की जरूरतों के हिसाब से बदले गए एक आजमाए हुए जर्मन डिजाइन और प्रोजेक्ट 75 (स्कॉर्पीन) से मजगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) के अनुभव पर आधारित होंगी।
प्रोजेक्ट 75(I) क्या है
प्रोजेक्ट 75(I) भारत के सबसे महंगे डिफेंस एक्विजिशन प्रोग्राम में से एक है। इसका मकसद भारतीय नौसेना के लिए छह नेक्स्ट जेनरेशन की कन्वेंशनल सबमरीन बनाना है, जो एडवांस्ड एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP), आधुनिक सेंसर और हथियारों से लैस होंगी। इसके साथ ही इन पनडुब्बियों का डीप टेक्नोलॉजी ट्रांसफर भी किया जाएगा, जिससे भारत के मेक इन इंडिया इनिशिएटिव को बढ़ावा मिलेगा। यह प्रोजेक्ट 75 का अगला चरण है और इसमें जर्मनी की कंपनियों के साथ तकनीकी सहयोग से भारत में पनडुब्बियों का निर्माण शामिल है। इसी की तर्ज पर प्रोजेक्ट 75 के तहत फ्रांस के सहयोग से 6 स्कॉर्पीन-श्रेणी की पनडुब्बियां बन रही हैं, जिनमें से कुछ नौसेना में शामिल हो चुकी हैं।
डील लेट होने से बढ़ सकता है इंतजार
इंटरव्यू में रहमान ने चेतावनी दी कि इतने बड़े प्रोग्राम में टाइमलाइन कई आपस में जुड़े फैक्टर्स पर निर्भर करती है। इनमें कॉन्ट्रैक्ट को फाइनल करने की समयसीमा, टेक्निकल जरूरतों को समय पर तय करना, भारतीय वेंडर्स की तैयारी, और AIP, कॉम्बैट सिस्टम और हथियारों जैसे जटिल सिस्टम का इंटीग्रेशन और सर्टिफिकेशन शामिल हैं। MDL और पार्टनर सुविधाओं पर इंफ्रास्ट्रक्चर और वर्कफोर्स की तैयारी भी निर्णायक होगी। उन्होंने कहा, “इन जोखिमों को MDL और अधिकारियों के साथ मिलकर निपटाया जाता है ताकि उन्हें जल्दी और पारदर्शिता से मैनेज किया जा सके।”














