यह अभियान चिल्लई कलां के साथ मेल खाता है—जो 21 दिसंबर से 31 जनवरी तक चलने वाली सबसे भीषण सर्दी का समय है—और इसका उद्देश्य बर्फ से ढके उन इलाकों में सुरक्षा उपस्थिति बढ़ाना है जिनका इस्तेमाल आतंकवादी घुसपैठ करने या छिपने के लिए करते रहे हैं।
ऊंचाई वाली पर्वत श्रृंखलाओं पर चप्पे-चप्पे पर गश्ती
सूत्रों ने बताया कि हाल के दिनों में सेना की इकाइयां उच्च ऊंचाई वाली पर्वत श्रृंखलाओं पर आक्रामक गश्त कर रही हैं ताकि क्षेत्र में सक्रिय सशस्त्र समूहों को आराम या आश्रय न मिल सके। आधुनिक निगरानी तकनीक से लैस विशेष शीतकालीन उपकरणों से लैस अतिरिक्त सैनिकों को तैनात किया गया है।
सेना नागरिक प्रशासन, जम्मू-कश्मीर पुलिस (जेकेपी), सीआरपीएफ, विशेष अभियान दल (एसओजी), वन रक्षकों और ग्राम रक्षा रक्षकों (वीडीजी) के साथ समन्वित अभियान का नेतृत्व कर रही है। एक सूत्र ने बताया कि जमीनी इकाइयों और खुफिया नेटवर्क के बीच तालमेल से प्रतिक्रिया समय कम हो गया है, जिससे कार्रवाई योग्य सुरागों पर त्वरित कार्रवाई संभव हो पाई है।
उन्होंने आगे बताया कि मौजूदा आकलन के अनुसार जम्मू क्षेत्र में 30-35 सक्रिय आतंकवादी हैं, जिनमें से कई पकड़े जाने से बचने के लिए ऊंचे या मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में चले गए हैं। ग्रामीणों से भोजन और आश्रय के लिए जबरन वसूली के प्रयास की भी खबरें हैं।
क्या है नई रणनीति
नई रणनीति के तहत, सैनिक पहले जमीनी गश्त के माध्यम से क्षेत्रों को सुरक्षित करते हैं और फिर आतंकवादियों के पुनः प्रवेश या गतिविधि को रोकने के लिए निरंतर निगरानी रखते हैं।विशेष रूप से प्रशिक्षित शीतकालीन युद्ध उप-इकाइयों को प्रमुख क्षेत्रों में तैनात किया गया है। ये सैनिक उच्च ऊंचाई पर जीवित रहने, बर्फ में नेविगेशन, हिमस्खलन से निपटने और शीत मौसम में युद्ध करने में कुशल हैं।
सेना शीतकालीन ग्रिड को समर्थन देने के लिए ड्रोन आधारित टोही, जमीनी सेंसर, निगरानी रडार, थर्मल इमेजिंग उपकरण और मानवरहित हवाई प्रणालियों सहित नवनिर्मित प्रणालियों को भी तैनात कर रही है।














